ताज़े गुलाब का उन्माद विनय कुमार 20/03/2012 जगदीश चतुर्वेदी No Comments मैंने गुलाब को छुआ और उसकी पंखुड़ियाँ खिल उठीं मैंने गुलाब को अधरों से लगाया और उसकी कोंपलों में ऊष्मा उतर आई। गुलाब की आँखॊं में वसन्त था और … [Continue Reading...]
समाधिस्थ विनय कुमार 20/03/2012 जगदीश चतुर्वेदी No Comments गुम्बदों पर अन्धेरा ठहर गया है एक काली नदी बहती है अंतस्तल से निबिड़ अन्धकार में। कगारों पर पड़े हैं कटे हुए परिन्दों के अनगिनत पंख और उन पगचिन्हों … [Continue Reading...]