Category: जगन्नाथ आज़ाद
मन्ज़िल-ए-जानाँ को जब ये दिल रवाँ था दोस्तो| तुम को मैं कैसे बताऊँ क्या समाँ था दोस्तो| हर गुमाँ पहने हुए था एक मल्बूस-ए-यक़ीं, हर यक़ीं जाँ दादा-ए-हुस्न-ए-गुमाँ था …
इस दौर में तू क्यों है परेशां व हेरासां भारत का तू फ़रज़ंद है बेगाना नहीं है क्या बात है क्यों है मोत-ज़ल-ज़ल तेरा ईमां ये देश तेरा घर …
जो था दिल का दौर गया मगर है नज़र में अब भी वो अंजुमन वो खयाल-ए-दोस्त चमन चमन, वो जमाल-ए-दोस्त बदन बदन अभी इब्तिदा-ए-हयात है, अभी दूर मंजिल-ए-इश्क है …
कामरान यूँ था मेरा बख़्त-ए-जवां कल रात को झुक रहा था मेरे दर पे आसमां कल रात को हुस्न जब था इश्क़ के घर मेहमां कल रात को उठ …
तेरी बज़्म-ए-तरब में सोज़-ए-पिन्हाँ लेके आया हूँ| चमन में यादे-अय्याम-ए-बहाराँ लेके आया हूँ| तेरी महफ़िल से जो अरमान-ओ-हसरत लेके निकला था, वो हसरत लेके आया हूँ वो अरमाँ लेके …
जिस तरह दामन-ए-मश्रिक़ में सहर होती है ज़र्रे ज़र्रे को तजल्ली की ख़बर होती है और जब नूर का सैलाब गुज़र जाता है रात भर एक अंधेरे में बसर …