Category: जे० स्वामीनाथन
मैं कहता हूँ महाराज इस डिंगली में आग लगा दो पेड़ जल जाएँगे तो कहाँ बनाएँगे घोंसले ये सुग्गे देखो न, इकट्ठा हमला करते हैं एक मिनट बैठे, एक …
बीज चलते रहते हैं हवा के साथ जहाँ गिरते हैं थम जाते हैं ढीठ बिरक्स बन जाते हैं और टिके रहते हैं कमबख़्त बगलों की तरह, या कि जोगी …
परबत की धार पर बाँहें फैलाए खड़ा है जैसे एक दिन बादलों के साथ आकाश में उड़ जाएगा जंगल कोकूनाले तक उतरे थे ये देवदार और आसमान को ले …
यह जो सामने पहाड़ है इसके पीछे एक और पहाड़ है जो दिखाई नहीं देता धार-धार चढ़ जाओ इसके ऊपर राणा के कोट तक और वहाँ से पार झाँको …
झींगुर टर्राने लगे हैं और खड्ड में दादुर अभी हुआ-हुआ के शोर से इस चुप्पी को छितरा देंगे सियार ज़रा जल्दी चलें महाराज यह जंगल का टुकड़ा पार हो …
हम मानुस की कोई जात नहीं महाराज जैसे कौवा कौवा होता है, सुग्गा, सुग्गा और ये छितरी पूँछ वाले अबाबील, अबाबील तीर की तरह ढाक से घाटी में उतरता …
वह आग देखते हो आप सामने वह जो खड्ड में पुल बन रहा है अरे, नीचे नाले में वह जो टरक ज़ोर मार रहा था पार जाने के लिए …