Category: ग्वाल
सूरज-सुता के तेज तरल तरंग ताकि, पुंज देवता के घिरें ताके चहुँ कोय के । ग्रीषम-बहारैं, बेस छूटत फुहारैं-धारैं, फैलत हजारैं हैं गुलाब स्वच्छ तोय के ॥ ग्वाल कवि …
मेष-वृष तरनि तचाइन के त्रासन तें, सीतलाई सब तहखानन में ढली है । तजि तहखाने गई सर, सर तजि कंज, कंज तजि चंदन-कपूर पूर पली है ॥ ग्वाल कवि …
बरफ-सिलान की बिछायत बनाय करि, सेज संदली पै कंज-दल पाटियतु है । गालिब गुलाब जल-जाल के फुहारे छूटें, खूब खसखने पर गुलाब छाँटियतु है ॥ ग्वाल कवि सुंदर सुराही …
फाग मैं, कि बाग मैं, कि भाग मैं रही है भरि, राग मैं, कि लाग मैं कि सौंहैं खात झूठी मैं। चोरी मैं, कि जोरी मैं, कि रोरी मैं …
प्यारी आउ छात पै निहारि नए कौतुक ये, घन की छटा तें खाली नभ में न ठौर हैं। टे, सूधी, गोल औ चखूंटी, बहु कौनवारीं, खाली, लदी, खुली, मुंदी, …
पाय रितु ग्रीषम बिछायत बनाय, वेष – कोमल कमल निरमल दल टकि-टकि । इंदीवर कलित ललित मकरंद रचीं, छूटत फुहारे नीर सौरभित सकि-सकि ॥ ग्वाल कवि मुदित बिराजत उसीरखाने, …
झर झर झाँपै बड़े दर दर ढ़ाँपै नापै , तऊ काँपै थर थर बाजत बतीसी जाय । फेरि पसमीनन के चौहरे गलीचन पै , मखमली सौरि आछी सोऊ सरदी …
जैसे कान्ह जान तैसे उद्धव सुजान आए , हैँ तो मेहमान पर प्रान हैँ निकारे लेत । लाख बेर अँजन अँजाए इन हाथन सोँ , तिनको निरँजन कहत झूठ …
जेठ को न त्रास, जाके पास ये बिलास होंय, खस के मवास पै, गुलाब उछरयो करै। बिही के मुरब्बे, चांदी के बरक भरे, पेठे पाग केवरे में, बरफ परयो …
चाहिए जरूर इनसानियत मानुस को, नौबत बजे वै फेर भेर बजनो कहा जात और अजात कहा, हिन्दू औ मुसलमान जाने कियो नेह, फेर, ताते भजनो कहा ‘ग्वाल कवि’ जाके …
ग्रीषम की पीर के विदीर के सुनो ये साज, तरु-गिरि तीर के, सुछाया में गंभीर के । सीतल समीर के सुगंधी गौन धीर के जे, सीर के करैया प्यासे …
ग्रीषम की गजब धुकी है धूप धाम-धाम, गरमी झुकी है जाम-जाम अति तापिनी । भीजे खस-बीजन झुलै हैं ना सुखात स्वेद, गात न सुहात बात, दावा सी डरापिनी ॥ …
को रति है अरु कौन रमा उमा छूटी लटैँ निचुरैँ गुयीँ मोती । हाय अनूठे उरोज उठे भये मैन तुठे भये और है कोती । त्योँ कवि ग्वाल नदी …