Category: गुलज़ार
तुम गये तो और कुछ नही हुआ दिल पे ऐत्बार घट गया मेरा में जो दिल के पीछे उसके नक्शे पाअ के पांव रखके चलता था चलते चलते देखा …
लम्हो पर बेठी नज्मो को तितली जाल मे बन्द कर लेना फिर काट के पर उन नज्मो को अल्बम मे पिन करते रहना जुल्म नही तो और किया है …
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन ऐसी तस्वीर के टुकड़े …
हिंदुस्तान में दो दो हिंदुस्तान दिखाई देते हैं एक है जिसका सर नवें बादल में है दूसरा जिसका सर अभी दलदल में है एक है जो सतरंगी थाम के …
हमें पेड़ों की पोशाकों से इतनी सी ख़बर तो मिल ही जाती है बदलने वाला है मौसम… नये आवेज़े कानों में लटकते देख कर कोयल ख़बर देती है बारी …
कुरान हाथों में लेके नाबीना एक नमाज़ी लबों पे रखता था दोनों आँखों से चूमता था झुकाके पेशानी यूँ अक़ीदत से छू रहा था जो आयतें पढ़ नहीं सका …
याद है इक दिन मेरी मेज़ पे बैठे-बैठे सिगरेट की डिबिया पर तुमने एक स्केच बनाया था आकर देखो उस पौधे पर फूल आया है !
सितारे लटके हुए हैं तागों से आस्माँ पर चमकती चिंगारियाँ-सी चकरा रहीं आँखों की पुतलियों में नज़र पे चिपके हुए हैं कुछ चिकने-चिकने से रोशनी के धब्बे जो पलकें …
साँस लेना भी कैसी आदत है जीये जाना भी क्या रवायत है कोई आहट नहीं बदन में कहीं कोई साया नहीं है आँखों में पाँव बेहिस हैं, चलते जाते …
शाम से आँख में नमी सी है आज फिर आप की कमी सी है दफ़्न कर दो हमें कि साँस मिले नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है वक़्त …
वो जो शायर था चुप-सा रहता था बहकी-बहकी-सी बातें करता था आँखें कानों पे रख के सुनता था गूँगी खामोशियों की आवाज़ें! जमा करता था चाँद के साए और …
वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था हवाओं का रुख़ दिखा रहा था कुछ और भी हो गया नुमायाँ मैं अपना लिखा मिटा रहा था उसी का इमान बदल …
तारपीन तेल में कुछ घोली हुई धूप की डलियाँ मैंने कैनवास में बिख़ेरी थीं मगर क्या करूँ लोगों को उस धूप में रंग दिखते ही नहीं! मुझसे कहता था …
वक़्त को आते न जाते न गुजरते देखा न उतरते हुए देखा कभी इलहाम की सूरत जमा होते हुए एक जगह मगर देखा है शायद आया था वो ख़्वाब …
कोई मेला लगा है परबत पर सब्ज़ाज़ारों पर चढ़ रहे हैं लोग टोलियाँ कुछ रुकी हुईं ढलानों पर दाग़ लगते हैं इक पके फल पर दूर सीवन उधेड़ती-चढ़ती, एक …
रिश्ते बस रिश्ते होते हैं कुछ इक पल के कुछ दो पल के कुछ परों से हल्के होते हैं बरसों के तले चलते-चलते भारी-भरकम हो जाते हैं कुछ भारी-भरकम …
दूर सुनसान-से साहिल के क़रीब एक जवाँ पेड़ के पास उम्र के दर्द लिए वक़्त मटियाला दोशाला ओढ़े बूढ़ा-सा पाम का इक पेड़, खड़ा है कब से सैकड़ों सालों …
रात भर सर्द हवा चलती रही रात भर हमने अलाव तापा मैंने माजी से कई खुश्क सी शाखें काटीं तुमने भी गुजरे हुये लम्हों के पत्ते तोड़े मैंने जेबों …
मौत तू एक कविता है मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको डूबती नब्ज़ों में जब दर्द को नींद आने लगे ज़र्द सा चेहरा लिये जब चांद उफक …
मैं अपने घर में ही अजनबी हो गया हूँ आ कर मुझे यहाँ देखकर मेरी रूह डर गई है सहम के सब आरज़ुएँ कोनों में जा छुपी हैं लवें …
मेरे रौशनदार में बैठा एक कबूतर जब अपनी मादा से गुटरगूँ कहता है लगता है मेरे बारे में, उसने कोई बात कही। शायद मेरा यूँ कमरे में आना और …
अकसर तुझको देखा है कि ताना बुनते जब कोई तागा टूट गया या खत्म हुआ फिर से बांध के और सिरा कोई जोड़ के उसमे आगे बुनने लगते हो …
छोटे थे, माँ उपले थापा करती थी हम उपलों पर शक्लें गूँथा करते थे आँख लगाकर – कान बनाकर नाक सजाकर – पगड़ी वाला, टोपी वाला मेरा उपला – …
मकान की ऊपरी मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता वो कमरे बंद हैं कबसे जो 24 सीढियां जो उन तक पहुँचती थी, अब ऊपर नहीं जाती मकान की ऊपरी …
बारिश आने से पहले बारिश से बचने की तैयारी जारी है सारी दरारें बन्द कर ली हैं और लीप के छत, अब छतरी भी मढ़वा ली है खिड़की जो …