Category: गोविन्द माथुर
वे हवा को क़ैद कर कहते है कि- मौसम का बयान करो उस चरित्रहीन मौसम का जिसको तमीज नही है हरे और पीले पत्तों में अन्तर की उसकी बदतमीजी …
हत्यारों के चेहरों पर होती है विनम्र हँसी हत्यारे कभी हत्या नहीं करते हत्यारे निर्भय हो कर घूमते है शहर की सड़कों पर हत्यारों के हाथों में नहीं होते …
हत्यारों की जेब में होता है देश का नक्शा टुकडों टुकडों में, अलग अलग जेब में अलग अलग भाषा में हत्यारे नक्शा जोड़ते नहीं हत्यारे सिलवाते रहते है नई …
उसने स्त्री की नींद में प्रवेश किया एक स्वप्न की तरह नहीं उसने स्त्री की देह में प्रवेश किया एक आत्मा की तरह नहीं देह के हर छिद्र को …
दूध के धुले हुए तो हम तब भी नहीं थे दूध में पानी मिलाना तो तब से ही शुरू कर दिया था जब दूध की कमी नहीं थी उन्ही …
भेड़ि़ए और गिद्ध एक सँयुक्त मोर्चा बनाते हैं पर जंगल में शासन शेर का ही रहता है शेर चाहे कितना ही बूढ़ा है पर उसकी गर्जना से अब भी …
बेटी का जन्म होने पर छत पर जा कर नही बजाई जाती काँसे की थाली बेटी का जन्म होने पर घर के बुजुर्ग के चेहरे पर बढ़ जाती हैं …
उन्होने बनवाया एक आलीशान मकान लाखों में खरीदी थी जमीन करोड़ों में कमाया था काला धन राजधानी से आया वास्तुकार दूर-दराज से आये पत्थर गलियारे में लगा था सफ़ेद …
बहुत बरस हुए एक बच्चा था साँवला मासूम चेहरा छोटी-छोटी उदास आँखें जब वह हँसता था तो उसकी आँखें मिच जाया करती थीं उलझे घुंघराले बाल वाला बच्चा हँसता …
बच्चे जानते हैं घर का अर्थ बच्चे जानते हैं हाथी के दाँत दिखाने के और खाने के और होते हैं हम बहुत कुछ भूलते जा रहे हैं बच्चे दिखाते …
दबे पाँव आना किसे कहते हैं ये जानती है-बिल्ली चौकन्नी! बिना आवाज़ किए आपके पास आकर बैठ जाती है-बिल्ली बिल्ली धैर्य से प्रतीक्षा करती है घर की स्त्री के …
जीभ का भूला हुआ स्वाद जीभ पर नहीं है सुरक्षित है मेरी स्मृति में न रोटियों में न दाल में न अचार में बचा है स्वाद मेरी स्मृतियों में …
प्रेम करते हुए लोग अक्सर रहते हैं चुप-चुप प्रेम करते हुए लोग अक्सर रहते हैं बेख़बर प्रेम करते हुए लोग कुछ नहीं सोचते प्रेम के सिवाय प्रेम करते हुए …
कभी शहर की चारदीवारी में रहता था मेरा सारा कुनबा मेरा ननिहाल हो या मेरे पिता का ननिहाल मेरी मौसियों, मेरी बुआओं और मेरी बहिनों के ससुराल एक किलोमीटर …
बहुत बुरे दिनों की आहट सुनाई दे रही है मुझे बहुत सहा है इस पृथ्वी ने बहुत सुना है देखा है इस पृथ्वी ने इस पृथ्वी पर कितने महारथियों …
सर्दियों की ठिठुरती सुबह में मेरा पुराना कोट पहने सिकुड़े हुए कही दूर से दूध लेकर आते है पिता दरवाज़े पर उकडू से बैठे बीड़ी पीते हुए मुझे आता …
कैसी भी रही हो ठण्ड ठिठुरा देने वाली या गुलाबी एक ही स्वेटर था मेरे पास नीली धारियों वाला बहिन के स्वेटर बुनने से पहले किसी की उतरी हुई …
कई हज़ार वर्षों से नींद में जाग रही है वह स्त्री नींद में भर रही है पानी नींद में बना रही है व्यंजन नींद में बच्चों को खिला रही …
दूसरे शहर में घर नहीं होता समाचार-पत्र में नहीं मिलते अपने शहर के समाचार दूसरे शहर में सड़क पर चलते हुए ये अहसास साथ चलता यहाँ इस शहर में …
आदमी बाज़ार से ले आया फल और सब्ज़ियाँ दे आया थोड़ी-सी ख़ुशियाँ आदमी बाज़ार से ले आया घी और तेल दे आया थोड़ा-सा स्वास्थ्य आदमी बाज़ार से ले आया …
आदमी को होना चाहिए थोड़ा सा हँसमुख रहना चाहिए थोड़ा-सा लापरवाह आदमी को होना चाहिए थोड़ा सा बेईमान बोलना चाहिए थोड़ा-सा झूठ आदमी को होना चाहिए थोड़ा-सा फूहड़ दिखना …
श्वेत श्याम तस्वीरों में अभी मौजूद है पुराने मित्र गले में बाँहें डाले या कंधे पर कुहनी टिकाए तस्वीरें देख कर नहीं लगता बरसों से नहीं मिले होगें ये …
वह स्त्री पवित्र अग्नि की लौ से गुज़र कर आई उस घर में उसकी देह से फूटती रोशनी समा गई घर की दीवारों में दरवाज़ों और खिड़कियों में उसने …
जैसा दिखता हूँ वैसा हूँ नहीं मैं जैसा हूँ वैसा दिखता नही जैसा दिखना चाहता हूँ वैसा भी नही दिखता बहुत कोशिश की अपनी छवि बनाने की वेशभूषा भी …
ढाई कमरों के घरनुमा मकान के कोनो में अपना दुबका हुआ बचपन पलस्तर उखड़ी दीवारों पर किशोरावस्था में लिखे अपने नाम के अक्षर ढूंढता हूँ दुबका हुआ बचपन माँ …