Category: गोरखनाथ
हिरदा का भाव हाथ मैं जानिये यहु कलि आई षोटी । बद्न्त गोरष सुनो रे अवधू करवे होइ सु निकसै टोटी ।।
हिन्दू ध्यावै देहुरा मुसलमान मसीत । जोगी ध्यावै परम पद जहाँ देहुरा न मसीत ।।
वदन्त गोरष राई परसि ले केदारं पांणी पीओ पूता त्रभुवन सारं । ऊँचे-ऊँचे परवत विषम के घाट तिहाँ गोरषनाथ कै लिया सेबाट । काली गंगा, धौली गंगा झिलमिल दीसै …
रूपे-रूपे कुरूपे गुरुदेव, बाघनी भोले-भोले । जिन जननी संसार दिषाया, ताको ले सूते षोले । गुरु षोजो गुरुदेव, गुरु षोजो ब्द्न्त गोरख ऐसा । मुषते होई तुम्हें बंधनि पड़िया …
रमि रमिता सों गहि चौगानं, काहे भूलत हो अभिमानं । धरन गगन बिच नहीं अंतरा, केवल मुक्ति भैदानं । अंतरि एक सो परचा हूवा, तब अनंत एक में समाया …
यहु मन सकती यहु मन सीव यहु मन पांच तत्त का जीव । यहु मन लै जै उनमन रहै तो तीन लोक की वार्ता कहै ।।
मारो मारो स्र्पनी निरमल जल पैठी । त्रिभुवन डसती गोरषनाथ दीठी ।। मारो स्र्पनी जगाईल्यो भौरा, जिनि मारी स्र्पनी ताको कहा करे जोंरा । स्र्पनी कहे मैं अबला बलिया, …
बूझो पंडित ब्रह्म गियानम गोरष बोलै जाण सुजानम । बीज बिन निसपती मूल बिन विरषा पान फूल बिन फलिया, बाँझ केरा बालूड़ा प्यंगुला तरवरि चढ़िया । गगन बिन चन्द्र्म …
रहता हमारै गुरु बोलेये, हम रहता का चेला । मन मानै तौ संगि फिरै, निंहतर फिरै अकेला ।। अवधू ऐसा ग्यांन बिचारी तामैं झिलिमिलि जोति उजाली । जहाँ जोग …
ग्यान सरीषा गुरु न मिलिया , चित्त सरीषा चेला । मन सरीषा मेलू न मिलिया ताथैं गोरष फिरै अकेला ।।
नाथ बोले अमृत बाणी वरिषेगी कंबली भीजैगा पाणी । गाडी पडरवा बांधिले शूंटा, चले दमामा बाजिलै ऊंटा । कऊवा की डाली पीपल बासे, मूसा कै सबद बिलइया नासे । …
कैसे बोलों पंडिता देव कौने ठाईं निज तत निहारतां अम्हें तुम्हें नाहीं । (टेक ) पषाणची देवली पषाणचा देव, पषाण पूजिला कैसे फीटीला सनेह । सरजीव तैडिला निरजीव पूजिला, …
कुम्हरा के घर हांडी आछे अहीरा के घरि सांडी । बह्मना के घरि रान्डी आछे रान्डी सांडी हांडी । राजा के घर सेल आछे जंगल मंधे बेल । तेली …
कहणि सुहैली रहणि दुहैली कहणि रहणि बिन थोथी । पठ्या गुण्या सूवा बिलाई षाया पंडित के हाथ रह गई पोथी । कहणि सुहैली रहणि दुहैली बिन षाया गुड मीठा …
आवो माई धरि धरि जावो गोरष बाला भर भर षावो । झरै न पारा बाजे नाद सति हर सूर न वाद विवाद । पवन गोटिका रहणी अकास महियल अंतर …
आफू खाय भांग मसकावे ता मैं अकलि कहाँ तै आवे । चढ़ताँ पित्त उतरताँ बाई, ताते गोरख भाँगि न षाई ।। मिंदर छाडे कुटी बँधावै, त्यागे माया और मँगावै …
अवधू माँस भषन्त दया धर्म का नास । मद पीवत तहाँ प्राण निरास । भाँगि भषन्त ग्यान ध्यान षोवँत । जम दरबारी ते प्राणी रोवँत ।।
अवधू गागर कंधे पांणीहारी, गवरी कन्धे नवरा । घर का गुसाई कोतिग चाहे काहे न बन्धो जोरा । लूंण कहै अलूणा बाबू घृत कहै मैं रूषा । अनल कहै …
अवधू ईस्वर हमारे चेला भणीजै मछीन्द्र बोलीये नाती । निगुरी पिरथी परले जाती ताथै हम उलटी थापना थापी ।
नाथ निरंजन आरती साजै । गुरु के सबदूं झालरि बाजे ।। अनहद नाद गगन में गाजै, परम जोति तहाँ आप विराजै । दीपक जोति अषडत बाती, परम जोति जगै …
नाथ कह्तां सब जग नाथ्या गोरष कह्तां गोई । कलमा का गुर महंमद होता पहलें मूवा सोई ।।
जहाँ गोरष तहाँ ग्यान गरीबी दुँद बाद नहीं कोई । निस्प्रेही निरदावे षेले गोरष कहीये सोई ।।
चलि रे अबिला कोयल मौरी , धरती उलटि गगन कूँ दौरी । गईयां वपडी सिंघ नै घेरै मृतक पसू सूद्र कूँ उचरै । काटे ससत्र पूजै देव भूप करै …