Category: गोरख पाण्डेय
सुनना मेरी दास्तो अब तो जिगर के पास हो तेरे लिए मैं क्या करूँ तुम भी तो इतने उदास हो कहते हैं रहिए खमोश ही, चैन से जीना सीखिए …
कैसे अपने दिल को मनाऊँ मैं कैसे कह दूँ तुझसे कि प्यार है तू सितम की अपनी मिसाल है तेरी जीत में मेरी हार है तू तो बाँध रखने …
पहिले-पहिल जब वोट मांगे अइले तोहके खेतवा दिअइबो ओमें फसली उगइबो । बजडा के रोटिया देई-देई नुनवा सोचलीं कि अब त बदली कनुनवा । अब जमीनदरवा के पनही न …
सूतन रहलीं सपन एक देखलीं सपन मनभावन हो सखिया, फूटलि किरनिया पुरुब असमनवा उजर घर आँगन हो सखिया, अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा त खेत भइलें आपन हो …
पैसे की बाहें हज़ार अजी पैसे की महिमा है अपरम्पार अजी पैसे की पैसे में सब गुण, पैसा है निर्गुण उल्लू पर देवी सवार अजी पैसे की पैसे के …
हमारी ख्वाहिशों का नाम इन्क़लाब है ! हमारी ख्वाहिशों का सर्वनाम इन्क़लाब है ! हमारी कोशिशों का एक नाम इन्क़लाब है ! हमारा आज एकमात्र काम इन्क़लाब है ! ख़तम हो लूट किस …
हत्या की ख़बर फैली हुई है अख़बार पर, पंजाब में हत्या हत्या बिहार में लंका में हत्या लीबिया में हत्या बीसवीं सदी हत्या से होकर जा रही है अपने …
समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई हाथी से आई, घोड़ा से आई अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद… नोटवा से आई, बोटवा से आई बिड़ला के घर में समाई, …
माया महाठगिनि हम जानी, पुलिस फौज के बल पर राजे बोले मधुरी बानी, यह कठपुतली कौन नचावे पंडित भेद न पावें, सात समन्दर पार बसें पिय डोर महीन घुमावें, …
फावड़ा उठाते हैं हम तो मिट्टी सोना बन जाती है हम छेनी और हथौड़े से कुछ ऎसा जादू करते हैं पानी बिजली हो जाता है बिजली से हवा-रोशनी औ’ …
जन गण मन अधिनायक जय हे ! जय हे हरित क्रांति निर्माता जय गेहूँ हथियार प्रदाता जय हे भारत भाग्य विधाता अंग्रेज़ी के गायक जय हे ! जन… जय समाजवादी …
हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो न हो कोई राजा न …
कला कला के लिए हो जीवन को ख़ूबसूरत बनाने के लिए न हो रोटी रोटी के लिए हो खाने के लिए न हो मज़दूर मेहनत करने के लिए हों …
फूल हैं गोया मिट्टी के दिल हैं धड़कते हुए बादलों के ग़लीचों पे रंगीन बच्चे मचलते हुए प्यार के काँपते होंठ हैं मौत पर खिलखिलाती हुई चम्पई ज़िन्दगी जो …
जब तक वह ज़मीन पर था कुर्सी बुरी थी जा बैठा जब कुर्सी पर वह ज़मीन बुरी हो गई । उसकी नज़र कुर्सी पर लगी थी कुर्सी लग गयी …
हवा का रुख कैसा है,हम समझते हैं हम उसे पीठ क्यों दे देते हैं,हम समझते हैं हम समझते हैं ख़ून का मतलब पैसे की कीमत हम समझते हैं क्या …
ये आँखें हैं तुम्हारी तकलीफ़ का उमड़ता हुआ समुन्दर इस दुनिया को जितनी जल्दी हो बदल देना चाहिये.
कहीं चीख उठी है अभी कहीं नाच शुरू हुआ है अभी कहीं बच्चा हुआ है अभी कहीं फ़ौजें चल पड़ी हैं अभी ।
मेहनत से मिलती है छिपाई जाती है स्वार्थ से फिर, मेहनत से मिलती है.
वे डरते हैं किस चीज़ से डरते हैं वे तमाम धन-दौलत गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद ? वे डरते हैं कि एक दिन निहत्थे और ग़रीब लोग उनसे डरना बंद कर …
डबाडबा गई है तारों-भरी शरद से पहले की यह अँधेरी नम रात । उतर रही है नींद सपनों के पंख फैलाए छोटे-मोटे ह्ज़ार दुखों से जर्जर पंख फैलाए उतर …
हमारी यादों में छटपटाते हैं कारीगर के कटे हाथ सच पर कटी ज़ुबानें चीखती हैं हमारी यादों में हमारी यादों में तड़पता है दीवारों में चिना हुआ प्यार। अत्याचारी …
एक झीना-सा परदा था, परदा उठा सामने थी दरख्तों की लहराती हरियालियाँ झील में चाँद कश्ती चलाता हुआ और खुशबू की बाँहों में लिपटे हुए फूल ही फूल थे …
आएँगे, अच्छे दिन आएँगें, गर्दिश के दिन ये कट जाएँगे । सूरज झोपड़ियों में चमकेगा, बच्चे सब दूध में नहाएँगे । सपनों की सतरंगी डोरी पर मुक्ति के फ़रहरे …
लोहे के पैरों में भारी बूट कंधों से लटकती बंदूक कानून अपना रास्ता पकड़ेगा हथकड़ियाँ डाल कर हाथों में तमाम ताकत से उन्हें जेलों की ओर खींचता हुआ गुजरेगा …