Category: गोपालशरण सिंह
है जग-जीवन की जननी तू तेरा जीवन ही है त्याग । है अमूल्य वैभव वसुधा का तेरा मूर्तिमान अनुराग । धूल-धूसरित रत्न जगत का है तेरी गोदी का लाल …
रहने दो मुझको निर्जन में काँटों को चुभने दो तन में मैं न चाहता सुख जीवन में करो न चिंता मेरी मन में घोर यातना ही सहने दो मुझे …
आते जो यहाँ हैं, ब्रज-भूमि की छटा वे देख, नेक न अघाते, होते मोद-मद-माते हैं । जिस ओर जाते, उस ओर मन भाते दृश्य, लोचन लुभाते और चित्त को …
मैंने कभी सोचा, वह मंजुल मयंक में है, देखता इसी से उसे चाव से चकोर है । कभी यह ज्ञात हुआ वह जलधर में है, नाचता निहार के, उसी …
द्रुतविलम्बित दुखद दूर हुआ हिम-त्रास है, सुखद आगत श्री मधुमास है । अब कहीं, दुख का न निवास है, सब कहीं बस हास-विलास है ।।1।। दिवस रम्य, निशा रमणीय …
कर रहे हैं ये युगों से ग्राम में अज्ञात-वास, अंग जीवन का बनी है जन्म से ही भूख-प्यास, किन्तु हरते क्लेश हैं निज देश को कर अन्न-दान दीन भारत …
फूल हँसें खेलें नित फूलें, पवन दोल पर सुख से झूलें किन्तु शूल को कभी न भूलें, स्थिरता आती है जीवन में यदि कुछ नहीं अशान्ति रहे शांति रहे …
देव ! तुम्हारे पास । दिन दुखी जन का प्रतिनिधि बन, आया था यह दास । लाया था उपहार रूप में, केवल दुख निःश्वास । पर आशा भी रही चित्त …