Category: घनानंद
(राग रामकली) होरी के मदमाते आए, लागै हो मोहन मोहिं सुहाए । चतुर खिलारिन बस करि पाए, खेलि-खेल सब रैन जगाए ॥ दृग अनुराग गुलाल भराए, अंग-अंग बहु रंग …
सवैया हीन भएँ जल मीन अधीन कहा कछु मो अकुलानि समाने। नीर सनेही कों लाय अलंक निरास ह्वै कायर त्यागत प्रानै। प्रीति की रीति सु क्यों समुझै जड़ मीत …
स्याम घटा लपटी थिर बीज कि सौहै अमावस-अंक उज्यारी। धूप के पुंज मैं ज्वाल की माल सी पै दृग-सीतलता-सुख-कारी। कै छवि छायो सिंगार निहारि सुजान-तिया-तन-दीपति प्यारी। कैसी फ़बी घनआनँद …
सौंधे की बास उसासहिं रोकत, चंदन दाहक गाहक जी कौ । नैनन बैरी सो है री गुलाल, अधीर उड़ावत धीरज ही कौ ॥ राग-विराग, धमार त्यों धार-सी लौट परयौ …
सावन आवन हेरि सखी, मनभावन आवन चोप विसेखी । छाए कहूँ घनआनँद जान, सम्हारि की ठौर लै भूल न लेखी ॥ बूंदैं लगै, सब अंग दगै, उलटी गति आपने …
वैस की निकाई, सोई रितु सुखदायी, तामें – वरुनाई उलहत मदन मैमंत है । अंग-अंग रंग भरे दल-फल-फूल राजैं, सौरभ सरस मधुराई कौ न अंत है ॥ मोहन मधुप …
वहै मुसक्यानि, वहै मृदु बतरानि, वहै लड़कीली बानि आनि उर मैं अरति है। वहै गति लैन औ बजावनि ललित बैन, वहै हँसि दैन, हियरा तें न टरति है। वहै …
लाजनि लपेटि चितवनि भेद-भाय भरी लसति ललित लोल चख तिरछानि मैं। छबि को सदन गोरो भाल बदन, रुचिर, रस निचुरत मीठी मृदु मुसक्यानी मैं। दसन दमक फैलि हमें मोती …
राधा नवेली सहेली समाज में, होरी कौ साज सजें अतो सोहै । मोहन छैल खिलार तहाँ रस-प्यास भरी अँखियान सों जोहै ॥ डीठि मिलें, मुरि पीठि दई, हिय-हेत की …
(राग कान्हरौ ) मोसों होरी खेलन आयौ । लटपटी पाग, अटपटे बैनन, नैनन बीच सुहायौ ॥ डगर-डगर में, बगर-बगर में, सबहिंन के मन भायौ । ’आनँदघन’ प्रभु कर दृग …
सवैया मीत सुजान अनीत करौ जिन, हाहा न हूजियै मोहि अमोही। डीठि कौ और कहूँ नहिं ठौर फिरी दृग रावरे रूप की दोही। एक बिसास की टेक गहे लगि …
सवैया भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरी नेकु न हारति। साँझ तें भोर लौं तारनि ताकिबो तारनि सों इकतार न टारति। जौ कहूँ भावतो दीठि परै घनआनँद …
भए अति निठुर, मिटाय पहचानि डारी, याही दुख में हमैं जक लागी हाय हाय है। तुम तो निपट निरदई, गई भूलि सुधि, हमैं सूल सेलनि सो क्योहूँन भुलाय है। …
बैस नई, अनुराग मई, सु भई फिरै फागुन की मतवारी । कौंवरे हाथ रचैं मिंहदी, डफ नीकैं बजाय रहैं हियरा रीन ॥ साँवरे भौंर के भाय भरी, ’घनाआनँद’ सोनि …
बहुत दिनान के अवधि-आस-पास परे, खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान कौ। कहि कहि आवन सँदेसो मनभावन को, गहि गहि राखत हैं दै दै सनमान कौ। झूठी बतियानि की …
बरसैं तरसैं सरसैं अरसैं न, कहूँ दरसैं इहि छाक छईं। निरखैं परखैं करखैं हरखैं उपजी अभिलाषनि लाख जईं। घनआनँद ही उनए इनि मैं बहु भाँतिनि ये उन रंग रईं। …
प्रेम को महोदधि अपार हेरि कै, बिचार, बापुरो हहरि वार ही तैं फिरि आयौ है। ताही एकरस ह्वै बिबस अवगाहैं दोऊ, नेही हरि राधा, जिन्हैं देखें सरसायौ है। ताकी …
कवित्त प्रीतम सुजान मेरे हित के निधान कहौ कैसे रहै प्रान जौ अनखि अरसायहौ। तुम तौ उदार दीन हीन आनि परयौ द्वार सुनियै पुकार याहि कौ लौं तरसायहौ। चातिक …
पूरन प्रेम को मंत्र महा पन, जा मधि सोधि सुधारि है लेख्यौ। ताही के चारू चरित्र बिचित्रनि यौं पचि कै राचि राखि बिसेख्यौं ऎसो हियो-हित-पत्र पवित्र जु आन कथा …
पीरी परी देह छीनी, राजत सनेह भीनी, कीनी है अनंग अंग-अंग रंग बोरी सी । नैन पिचकारी ज्यों चल्यौई करै रैन-दिन, बगराए बारन फिरत झकझोरी सी ॥ कहाँ लौं …
पिय के अनुराग सुहाग भरी, रति हेरौ न पावत रूप रफै । रिझवारि महा रसरासि खिलार, सुगावत गारि बजाय डफै ॥ अति ही सुकुमार उरोजन भार, भर मधुरी ड्ग, …
पहिले घन-आनंद सींचि सुजान कहीं बतियाँ अति प्यार पगी। अब लाय बियोग की लाय बलाय बढ़ाय, बिसास दगानि दगी। अँखियाँ दुखियानि कुबानि परी न कहुँ लगै, कौन घरी सुलगी। …
परकाजहि देह को धारि फिरौ परजन्य जथारथ ह्वै दरसौ। निधि-नीर सुधा के समान करौ सबही बिधि सज्जनता सरसौ। घनआनँद जीवन दायक हौ कछू मेरियौ पीर हियें परसौ। कबहूँ वा …
(राग केदारौ) पकरि बस कीने री नँदलाल । काजर दियौ खिलार राधिका, मुख सों मसलि गुलाल ॥ चपल चलन कों अति ही अरबर, छूटि न सके प्रेम के जाल …
दसन बसन बोली भरि ए रहे गुलाल हँसनि लसनि त्यों कपूर सरस्यौ करै । साँसन सुगंध सौंधे कोरिक समोय धरे, अंग-अंग रूप-रंग रस बरस्यौ करै ॥ जान प्यारी तो …