Category: गिरीराज किराडू
राजस्थानी कवि और मित्र नीरज दइया के लिए वह कुछ इतने सरल मन से, लेकिन थोड़ा शर्मसार खुद पर हंसते हुए यह बात बोल गया कि यकीन नहीं हुआ …
इसी तरह होगा से शुरू या खत्म होने वाले दस वाक्य हम इतने हुनर से लिख सकते थे कि हमने तय पाया हमारे साथ कुछ नहीं या सब कुछ …
कौन क्षमा करेगा मुझे जब क्षमा मांगना ही पराभव या पस्ती हो गया हो मैं यह लिख रहा हूँ और आसमान मज़ाक उड़ा रहा है मेरा देखो लिख रहा …
बहुत धीमे से और सबको साफ़ नज़र आ रही घबराहट के साथ उसने पढ़ना शुरू किया एक ट्रेन के गुज़रने के बारे में खिड़की के सामने से एक लड़की …
चाचा ने जब गोदो किया दुखी रहे थे बहुत दिनों तक कोर्ट मार्शल करते हुए बहुत उद्विग्न जब किया एवम् इन्द्रजित तो अपना नाम इन्द्रजित मोहन रख लिया और …
वह मादाम बोवारी का अभिनय कर रही है बिल्कुल अंतिम दृश्य है विष उसके शरीर में फैल रहा है वह क्षमा मांगती है यह देखते हुए मैं उसके पति …
हिरामन तीन कसमें खाता है फिर किसी कहानी का सुपात्र नहीं बनूंगा फिर किसी कहानीकार को अपने बारे में नहीं लिखने दूंगा फिर किसी कहानी में अपना ही पार्ट …
अपमान बेहद था होने का रक्त के दरिया में दौड़ते घुड़सवार थे किसी और से नहीं अपने आप से थी शर्मिंदगी हर साँस में हर शब्द का एक अर्थ …
पियरे मेनार्ड एक किताब लिखना चाहता है पर पहली मुश्किल तो यही कि वो ख़ुद कोई नहीं उसकी जीवनी तो शायद है कोई जीवन नहीं दूसरी यह कि वह …
(कवि अरूण कमल के लिये) क्या हुआ बैंको के बेटे का शेक्सपीयर हमें नहीं बताता – कुछ समझे बादशाह? उसकी कोई दिलचस्पी नहीं चुड़ैलों के बताये भविष्य में, तुम्हें …
नीम का अर्थ पीपल था पीपल का बरगद बरगद का तुलसी इसी तरह कमल का गुलाब गुलाब का बेला बेला का बोगेनवीलिया पर शुक्र है पेड़ का अर्थ कोई …
शायद एक वही सब कुछ पहले से जानता था सब कुछ पहले से तराश रखा था उसने वह हमेशा वीराने में रहता था और एक दिन अचानक उसके वीराने …
आप ख़ुशकिस्मत हैं कि चीख़ सकेंगे जब पूरा संसार किसी उलझे हुए उड़नखटोले से लटक कर किसी और आकाशगंगा में बसने के लिए फ़रार होने की कोशिश कर रहा …
बोल लेने के बाद दम साधे इन्तज़ार कर रहा था कि जिन शब्दों से बनी थी यह आवाज़ जब गिरेंगे वे शब्द पृथ्वी पर तो कुछ तो आवाज़ होगी …
पृथ्वी ने देखा सूरज पर अंधेरा है पृथ्वी ने देखा चांद पर अंधेरा है और वह इस तरह रोने लगी जैसे रोने लगी थी साथ काम करने वाली वह …
“जिसे बुहार कर रख दिया उसे कहीं सम्भाल कर भी रक्खा या नहीं ? क्या पता उसी में चली गई हों वे आख़िरी तीलियाँ भी !” “तुम्हें कितनी बार कहा है …
अपने कवि होने से थक गया हूँ होने की इस अज़ब आदत से थक गया हूँ कवि होने की कीमत है हर चीज़ से बड़ी है वो कविता जिसमे …
इसमे कोई रहस्य नहीं की इसी रास्ते पर तुम्हें पुरस्कार मुझे दंड मिल जाएगा किंतु सावधान! इसी रास्ते पर पुरस्कार श्राप दंड वरदान हो जाएगा यूं कोई संशय नहीं …
सामने हवा होती है और दूर तक फैली पृथ्वी अपने को पूरा झोंककर मैं दौड़ती हूँ हवा के ख़िलाफ़ और किसी प्रेत निश्चय से लगाती हूँ छलांग, उसी हवा …
यहाँ इतना कुहरा देखकर राहत हुई आख़िर मुझे आदत कहाँ बहुत-से हरे को धूप में चमकता देखने की पर ऐसे कुहरे की भी आदत कहाँ ! सर्द, सघन रहस्य नहीं, …
मेज इतनी पुरानी थी कि उसका कोई वर्तमान नहीं था हमारे बच्चे इतने नये थे कि उनका कोई अतीत नहीं था बच्चों का अतीत हमारे पाप में छुपा था …
जैसे नाम किसी शरणार्थी का टांग दिया हो मेरी कथा के द्वार पर शीर्षक की तरह वे आते हैं मेरे पास अपने सुख को कपड़ों के सबसे अन्दरूनी अस्तर …
कैसे देखते होंगे दो शव उन चार सौ विवाह उत्सवों को जिनकी रौनक के बीच सेगुजर कर उन्हें शमशान तक पहुंचाना है। कैसे देखती होंगी पान की दुकानें शवों …
जूते न हुई यात्राओं की कामना में चंचल हो उठते थे हमने उन पर बरसों से पॉलिश नहीं की थी धरती न हुई बारिशों की प्रतीक्षा में झुलसती थी …
हमने उन्हें आकाश में ठीक हमारे सिर पर मंडराते देखा था। जैसे पृथ्वी पर घूमने वाला नेपाली एक महीने में एक बार दस रुपये लेने आता है वैसे ही …