हेमन्ती भोर विनय कुमार 12/03/2012 गिरधर गोपाल No Comments हेमन्ती भोर एक जादू की पुड़िया है। सागर के फेन से बना हुआ बदन इस का, जंगल की चकित-भ्रमित हरिणी का मन इस का यह तो एक सोती-जागती हुई … [Continue Reading...]
शरद की हवा विनय कुमार 12/03/2012 गिरधर गोपाल No Comments शरद की हवा ये रंग लाती है, द्वार-द्वार, कुंज-कुंज गाती है। फूलों की गंध-गंध घाटी में बहक-बहक उठता अल्हड़ हिया हर लता हरेक गुल्म के पीछे झलक-झलक उठता बिछुड़ा … [Continue Reading...]