Category: गौरव संगतानी
दिल मानता नही इसे आदत है चोट खाने की…. कितनी दफ़ा कोशिश की हमने इसे समझाने की….. बहुत कुछ सीखा है इसने तुमसे पर इक बात सीख ना पाया…… …
काश कभी तुमने मेरी चाहत को समझा होता. चाहत ये ना थी सब कुछ मिले, पर कभी कुछ तो मिला होता…. हर क़दम पे तेरे साथ चले थे हम, …
ये कैसी है तेरे इश्क की जादूगरी, अभी तू यहीँ है और नहीं अभी | अभी तुझसे मिलकर हँसे थे हम, अभी तुझे खोकर रो दिये भी | …
तुझे नहीं मैं खुद को ढूँढता हूँ | उजालो से डर लगता है, अंधेरों को ढूँढता हूँ | ढूँढता हूँ उस शख्स को, जिसे तूने कभी चाहा था | …
दर्द की इंतहाँ हो गयी है यारों | सुबह चले थे अब शाम हो गयी है यारों | थक गयें हैं लेकिन कोई सहारा नहीं मिलता | समंदर में …
समझे नहीं जो खामोशी मेरी, मेरे लब्जों को क्या समझेंगे | बचते रहे उम्र भर साये से मेरे, मेरे जख्मों को क्या समझेंगे | भूल जाना यूँ तो नहीं …
बहुत भुलाना चाहा, बहुत कुछ भुलाया, पर अब भी बहुत कुछ याद है मुझे | वो इश्क की राहों में पहले कदम, उन कदमों पे लङखङाना और संभलना याद …
रात तब नहीं होती जब अंधेरा आ जाता है, रात तब होती है जब उज़ाला चला जाता है…… बात बहुत मामूली है…..इसिलिये तो खास है…..! दर्द तब नहीं …
जितना चाहा है तुम्हे…. वो चाहत कहाँ से लाओगे…! चाहत मिल भी गयी तो ये दिल कहाँ से लाओगे..! दिल ढूँढ भी लिया तुमने तो वो इतना जल नही …
मैने खुदा से दुआ माँगी… ए खुदा कोई तो ऐसा दे.. जो अंधेरो को उजालों मे बदल दे जो उदास चेहरे पे मुस्कान ला दे कोई तो ऐसा हो …
आओ आज नाम बदल लें…! ले लो इस नाम से जुड़ी सब दौलत और शौहरत, मुझे बेनामी का सुकून लौटा दो…. अक्सर तुम्हे देखा है नुक्कड़ पे बच्चो के …
कितनी दफा हम पूछते हैं न….. आख़िर क्यूँ..??? कुछ बातों का कोई कारण नही होता कोई अर्थ नहीं होता कोई तर्क नहीं होता आप स्वीकारें न स्वीकारें…. कोई …
कैसे कह दूं कि तेरी याद नही आती है, मेरी हर सांस मे बस तू ही महकाती है. आज भी रातों को जब चौंक के उठता हूँ, बस तू …
जिंदगी यूँ चली, होके खुद से खफ़ा | पाके भी खो दिया, हमने सब हर दफ़ा || कोई साथी नहीं, कोई संग ना चला | दर्द की रह में, …
भीनी भीनी सी खुशबु तेरी, महका महका सा एहसास है… | एक अरसा हुआ तुझको देखे हुए… पर तू हर लम्हा मेरे पास है…. || – गौरव संगतानी
हत्थां दा लिख्या लक्ख मिटाए कोई, हत्थां ते लिख्या नहीं मिटदा….. लक्ख करें जतन तू जट्टा, किस्मत दा लिख्या नहीं मुकदा…. लोकी पराये हो गए, ते हुए अपने …
सोचा नहीं कभी हमने, क्यूँ दिल तुमबिन परेशां है | क्यूँ सांसे उखड़ी उखड़ी हैं, आँखें क्यूँ हैरान हैं || सोचा नहीं कभी हमने, क्या रिश्ता ये अनजाना …
क्यूँ मसरूफ रहें हर वक्त, चंद लम्हें फुर्सत के भी बिताएं जाएँ | क्यूँ हर रिश्ते का नाम हो, एक मोहब्बत बेनाम भी निभाई जाये || तेरा नाम न …
जितना जाना जिंदगी को, बस इतना ही जाना है जाना…… कुछ भी नहीं है जानने को, बस वो पाया जिसने जो माना…. सारे पोथे, सारी बातें, मन …