Category: गँग
लहसुन गाँठ कपूर के नीर में, बार पचासक धोइ मँगाई। केसर के पुट दै दै कै फेरि, सुचंदन बृच्छ की छाँह सुखाई॥ मोगरे माहिं लपेटि धरी ‘गंग बास सुबास …
रती बिन साधु, रती बिन संत, रती बिन जोग न होय जती को॥ रती बिन मात, रती बिन तात, रती बिन मानस लागत फीको। ‘गंग कहै सुन साह अकब्बर, …
मृगनैनी की पीठ पै बेनी लसै, सुख साज सनेह समोइ रही। सुचि चीकनी चारु चुभी चित में, भरि भौन भरी खुसबोई रही॥ कवि ‘गंग’ जू या उपमा जो कियो, …
फूट गये हीरा की बिकानी कनी हाट हाट, काहू घाट मोल काहू बाढ़ मोल को लयो। टूट गई लँका फूट मिल्या जो विभीषन है, रावन समेत बस आसमान को …
करि कै जु सिंगार अटारी चढी, मनि लालन सों हियरा लहक्यो। सब अंग सुबास सुगंध लगाइ कै, बास चँ दिसि को महक्यो॥ कर तें इक कंकन छूटि परयो, सिढियाँ …
अब तौ गुनियाँ दुनियाँ को भजै, सिर बाँधत पोट अटब्बर की॥ कवि ‘गंग तो एक गोविंद भजै, कुछ संक न मानत जब्बर की। जिनको हरि की परतीत नहीं, सो …