Category: दुष्यन्त
1 एक अकेली दोपहर स्मृति तुम्हारी पहाड़ के निचले हिस्से में उस पल पहाड़ से ऊंची हो जाती है जैसे तुम्हारा गुस्सा पहाड़ होता था कभी मेरी प्रिया! 2 …
1 बीतती सदी के साथ बीता अनबीता बहुत और 21 वीं सदी के पहले दशक में खोज ली मैंने बीतने की जुगत खुद को समेटने सँभालने और जोतने की …
कहते हैं आज भी जीवित है बोधिवृक्ष खड़ा है वैसे ही सदियों के बाद भी हम-तुम रहेंगे-न रहेंगे हमारा प्रेम रहेगा बोधिवृक्ष की तरह।
देखा गेट वे ऑफ़ इन्डिया से एलिफ़ेंटा की गुफ़ाओं की ओर जाते हुए स्टीम बोट में हिचकोले खाते डर की रेखाओं के बीच स्थिर था अचल हमारा प्रेम।
मैं भर लूँ उडान ऊँचे-नीले अथाह आसमान में और अक्षरों की वर्षा हो जो तुमसे लिये हुए हैं और तुमको ही है समर्पित कभी तारों और कभी मोतियों की …
मैने नहीं की पूजा उस परमपिता की न ही किया सुमिरन किंतु जब तुमने अपने भगवान से मांग लिया मुझे मैं आठों पहर का पुजारी हो गया।
मैने अक्सर देखा है माँ को बापूजी का इन्तज़ार करते खाने के लिए चूल्हे के पास बापूजी पर गुस्सा होते कई बार पौंछे है मैंने माँ के आँसू अपने …
समय नहीं है घड़ी में घंटा-मिनट-सैकंड की सूई का मोमेंटम समय है इतिहास के पन्नों पर अंकित होते आखर-आखर दुख, सुख, खुशियाँ, नाकामयाबियाँ और कामयाबियाँ… सचमुच समय नहीं है …
गहरे होते हैं समय के घाव नहीं मिटते डिटर्जेंट से नहीं मिटते साबुन से समय के घाव होते हैं अनमिट बेमाता के लेख की तरह।
समय की रेतघड़ी में मोह की बारिश खो गई कहीं हर घर में पसर गया मौन छा गया अंधेरा मेरा राम तुम्हारा रहीम दोनों गुनहगार हो गए।
एक वक़्त था जब वक़्त की बिसात पर एक तरफ़ तुम थे एक तरफ़ हम और बीच में थे मोहरे एक वक़्त आज है जब वक़्त की बिसात पर …
जब मिली धरती आकाश से जब बने बादल जब निपजे खेत में धान के मोती जब जन्मा शिशु माँ की कोख से तो मुझे हुआ बोध अपने होने का।
सांझा अपना इतिहास सांझा अपना वर्तमान तुम्हारे दुख में शामिल मेरा दुख तुम्हारे सुख में शामिल मेरा सुख जैसे मेरे सुख में शामिल तुम्हारा सुख मेरे दुख में शामिल …
टूटना शरीर का टूटना वृक्ष का या किसी इमारत का टूटना सचमुच बहुत मायने रखता है परन्तु सपने का टूटना उम्मीद का टूटना और उससे भी दुखदाई होता है …
टुकड़ा-टुकड़ा धूप सर्दी की बूंद-बूंद खुशियाँ और आँसू-आँसू प्यास दाना-दाना भूख सचमुच ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत है.
आपकी ख़ुशबू आपकी आवाज़ आपका अहसास जैसे नए फूल हों मौसम के जो भर देते हैं निनाद ज़िन्दगी में।
आपके दर्शन आपसे ज्यादा सार्थक शायद ! आपकी अनुभूति, अपने आस-पास, आपके होने से ज्यादा अर्थवान है। आपके होने से केवल अनुभूति में उग जाता है मेरा सूरज ! आपके होने …
हरा- भरा है शहर की पॉश कॊलोनी का हरेक घर। उठती है आवाजें ख़ुशियाँ, अठखेलियाँ, टीस, सिसकियाँ और दब जाती है बिना आंगन के घर में बाहर सब कुछ …
साँस का विकल्प नहीं कोई शब्द और न ही कोई किताब केवल जीवन केवल जीवन ही है साँस का विकल्प…
कोसों पसरे मरुस्थल में जब गूँजती है किसी ग्वाले की टिचकार रेत के धोरों से उठती है रेतराग और भर लेती है समूचे आकाश को अपनी बाहों में।
बैठे हों जब किसी लॊन में हरी दूब पर अनायास ही चली जाती है हथेली सर पर तो अंगुलियां पगडंडी बनाकर घुस जाती है बालों में किंतु अहसास नहीं …
एक दिन टूट जाता है अक्षरों का पुल और फ़िर हम इन्सान नहीं सिर्फ़ हिंदू-मुस्लिम बन जाते हैं।