Category: दिविक रमेश
हाकिम हैं बात का बुरा क्योंकर मनाइए उनकी बला से मानिये या रूठ जाइए। घर नहीं दीवानखाने आ गए हैं आप अब उसूलन आप भी ताली बजाइए लड़ गई …
देख लीजिए न नरेन्द्र जी को हैं न ’कहीं‘। और राजेश जी को भी कैसे तो विराजमान हैं वे भी ’कहीं‘। इन्हें ही देख लीजिए और उन्हें भी तभी …
यही है वह लड़का आवारा जाने कैसे हैं माँ-बाप जना और छोड़ दिया। यही है खतरनाक निशान को छूकर भी ज़िन्दा है। तहकीकात हुई, लोगों ने पाया कि यह …
जरा सोचूँ सोचूँ बावजूद डर के सोचूँ बावजूद डरे हुओं के सोचूँ डर सिपाही में है या हमारी चोरी में डर मृत्यु में है या जीने की लालसा में …
सूरज रात-भर माँजता रहता है काली पृथ्वी को तब जाकर कहीं सुनहरी हो पाती है पृथ्वी
प्यास तो तुम्हीं बुझाओगी नदी मैं तो सागर हूँ प्यासा अथाह। तुम बहती रहो मुझ तक आने को। मैं तुम्हें लूँगा नदी सम्पूर्ण। कहना तुम पहाड़ से अपने जिस्म …
कितनी साफ़ नज़र आती हैं हमारे आगे और पीछे कितनी कितनी राहें हमारे बचपन में जबकि हमारे पाँव और कदम बहुत नन्हें और अबोध होते हैं। तब राहों के …
रात में भी रात की सी बात नहीं है गाँव है कि गाँव में देहात नहीं है न सही उरियाँ मगर दिल में तो निहाँ थी आज तो पर …
(एक) अच्छा ही नहीं ठीक भी लगता है बड़ी सभाओं की पिछली पंक्तियों में बैठना वहाँ से ठीक से देख पाता हूँ खुद को, ठीक से देख पाता हूँ …
यह कैसी ज़िद है महाप्रभु कि जो मिलना ही चाहिए उसे भी माँगू और वह भी फैलाकर हाथ गिड़गिड़ाकर नाक रगड़कर। क्यों? यह कैसी ज़िद है महाप्रभु जिसे देना …
मैं अंगूठा छाप होश तक नहीं जिसे बढ़े हुए नाखूनों का पीढ़ी दर पीढ़ी रह रहा है जो शरण में आपकी… मॆं… मैं तो बस इतना भर जानता हूँ …
बेटी ब्याही गई है गंगा नहा लिए हैं माता-पिता पिता आश्वस्त हैं स्वर्ग के लिये कमाया हॆ कन्यादान का पुण्य। और बेटी ? पिता निहार रहे हैं, ललकते से निहार …
बूढ़ी माँ ने धोकर दाने आँगन में रख दिए सुखाने धूप पड़ी तो हुए सुहाने आई चिड़ियाँ उनको खाने आओ बच्चो आओ चलकर बूढ़ी माँ की मदद करें हम …
कितनी भी भयानक हों सूचनाएँ क्रूर हों कितनी भी भविष्यवाणियाँ घेर लिया हो चाहे कितनी ही आशंकाओं ने पर है अभी शेष बहुत कुछ बहुत कुछ जैसे होड़। अभी …
एक आवाज़ है, बहुत सधी, लेकिन मौन पूछती सी कौन? एक प्रश्न है यही बहुत सरल नहीं जिसका उत्तर अगर देना पड़े खुद अपने संदर्भ में, और वह भी …
आकाश चीख़ नहीं सकता हम चीख़ सके हैं आकाश में कोई क्या चीख़ सकता है हम में ?
मुझको तो पुस्तक तुम सच्ची अपनी नानी / दादी लगती ये दोनों तो अलग शहर में पर तुम तो घर में ही रहती जैसे नानी दुम दुम वाली लम्बी …
सब के सब मर गए उनकी घरवालियों को कुछ दे दिवा दो भाई कैसा विलाप कर रही हैं। ’’कैसे हुआ ?‘‘ वही पुरानी कथा काठी गाल रहे थे लगता है …
आओ बच्चो आओ चलकर उस बच्चे के संग भी खेलें वह अकेला बैठा कब से उसको भी टोली में कर लें माँ भी और पिता भी उसके लगे हुए …
नदी नहर होकर मेरे गाँव आई नहर फिर भी नदी न हो पाई
बस इतना ही मालूम था मुझे कि एक डोर है यह जिसका यह सिरा मेरे हाथ में है। कहाँ है दूसरा सिरा सब कुछ अदृश्य था जितना भी खींच …
सूरज ने भेजा धरती पर अपनी बेटी किरण धूप को साथ खेलते धरती ने भी उगा दिया झट हरी दूब को दूब उगी तो देख गाय ने हिला हिला …
(एक) कहाँ है जीवनदायिनी वह कूची चितेरे की श्लोकों के मौन संगीत में देखो तो लौट रहीं टहनियाँ हरी हरी लौट रहा काफिला ठूँठों का वृक्षों की राह पर …
हाँ हमीं ने बुलाया था न आपको आपके मुद्दों पर विचार के लिए पर अब हम नहीं करेंगे न नहीं करेंगे माने नहीं करेंगे, जाइये। ऐ न्यायप्रिय जी सब …
अगर सुनानी तो नानू बस झट सुना दो एक कहानी देर करोगे तो सच कहती अभी बुलाती हूँ मैं नानी बोली डोलू बहुत ’बिजी‘ हूँ तुम तो नानू बिल्कुल …