Category: दिनेश कुशवाह
बहुत छोटी हो गई है हमारी दुनिया बहुत कम हुई है हमारी दुनिया की दूरी पर हमारा भय कम नहीं हुआ है। अलंघ्य कुछ भी नहीं है हमारी दुनिया …
ज़िन्दगी बड़ी कठिन है बेटे अपने आप मेें बुदबुदाया बूढ़ा सँपेरा पिटारे में बन्द साँप से ज़िन्दगी तमाशा नहीं है पर तमाशा ज़रूरी चीज़ है ज़िन्दगी के लिए। भरम …
ग़ज़ब की राम माया है ये कैसी धूप छाया है कि जिनके पास फंदे हैं उन्हीं के पास दाना है । भला क्या भेष धारे है वे सारा देश …
कितना अजीब समय आ गया है कि रोने के लिए भी नहीं बची है कोई गोद न सिर टिकाने के लिए कोई कंधा न ढाढ़स बँधाती कोई आँख यहाँ …
खरी खोटी कौन कहे कबीर! अब तो भला-बुरा कोई कुछ भी नहीं कहता इतने शालीन हो गए हैं लोग हज़ारों मील चलकर आई चिट्ठियाँ चिट्ठियाँ नहीं लगतीं इतने औपचारिक …
दिन भर इतने लोगों, इतनी चीज़ों और इतनी बातों का ख़याल रखना पड़ता है कि अपना ख़याल आते-आते थकान लग जाती है ऐसे में एक-दूसरे का ख़याल रखने के …
जिस चाव से विश्वनाथ जी खाते हैं पकवान उसी चाव से खाते हैं नमक और रोटी प्याज और मिर्च के साथ चटनी देखते ही उनका चोला मगन हो जाता …
पत्थरों में कचनार के फूल खिले हैं इनकी तरफ़ देखते ही आँखों में रंग छा जाते हैं मानों ये चंचल नैन इन्हें जनमों से जानते थे। मानो हृदय ही …
बहुत दिनों से मैं किसी ऐसे आदमी से मिलना चाहता हूं जिसे देखते ही लगे इसी से तो मिलना था। एक ऐसा आदमी जिसे पाकर यह देह रोज़ ही …