Category: दिनेश कुमार शुक्ल
इसी संसार-सागर में कई संसार डूबे हैं कोई तल में अतल में है कोई पाताल में है सभी में तुम उपस्थित हो किसी की डबडबाई आँखों को यहाँ से …
ये बकरियाँ तो आपकी बलिदानी भावना को समझने से रहीं इसीलिए ये सींग टकरा ही देती हैं जब तब और तिस भी जुर्रत कि इनकी माँ ख़ैर भी मनाती …
अब मास्को के उपर तैर रहा होगा सप्तर्षि मंडल हवाई जहाजों के साथ अब तुमने बन्द की होंगी खिडकियां रंगून में बताना तो क्या नाम है अब वियतनाम का …
मेरा अपना समय मुझी पर जटिल-कुटिल मुस्कुरा रहा है चुप्पी के गहरे पानी में देख रहा हूँ मैं अपने विलोम की छाया खगकुल-संकुल एक वृक्ष है मृग-जल के सागर …
जन्म देने वाली माँ होती है आग्नेय देश की निवासिनी चूल्हे की अग्नि की तरह प्रखर, उबलते हुए दूध, पकती हुई रोटी और प्रतिज्ञा में निवास करती है माँ …
तोड़ते तोड़ते दुःख के पहाड़ आता है एक दिन ऐसा जब खेलने लगती हैं आनन्द की लहरें तुम्हारे आनन पर पता नहीं कैसे वे भाँप लेते हैं तुम्हारी खुशी …
जा रही है लहर पीछे छूटता जाता है पानी लहर में पानी नहीं कुछ और है जो जा रहा है शब्द में टिकती नहीं कविता न कविता में समाता …
क्या कहूँ बस एक लालसा है जैसे पानी में पानी का स्वाद जैसे गेहूँ में बाली की चुभन जैसे मेरी आँखों में तुम, कोई इतनी बड़ी बात नहीं बस …
गोदा-गादी, चील-बिलउवा लिखो और मुस्काओ सीधी-सीधी बातों में भी अरथ अबूझ बताओ बड़े गुनीजन बनो खेलावन मार झपट्टा लाओ जिसे किसी ने कभी न गाया राग बिलावल गाओ पकनी …
हवा के शीशों में हमने देखा कि दृश्य कैसे बदल रहे हैं ये अक्स आता वो अक्स जाता इसी में दर्पण दहल रहे हैं तभी तो पथरा गई हैं …
कुछ के जीवन की नींव ही पड़ती है टेढ़ी पीटे तो वे अक़सर ही जाते हैं लेकिन इन दिनों, पिट जाने के कारण ही अनावश्यक हिंसा फैलाने के ज़िम्मेदार …
वैसे तो ख़ालिस पानी और कमसिन निगाहों तक से उतारा गया है इत्र एक जमाने में, लेकिन मिट्टी का इत्र तो अब भी उतारा जाता है कन्ऩौज में और …
न बड़ा न छोटा न खरा न खोटा आदमी कोई एक समूची चीज़ नहीं तमाम छोटे-छोटे जीवों का एक समूह है छोटे-छोटे रागों की एक सिम्फनी, छोटे-छोटे जीव और …
जब बरबस ही रसधार बहे जब निराधार ही चढ़े बेल बिन बादर की जब झड़ी लगे बिन जल के हंसा करे केलि तब जानो वह पल आन पड़ा जिस …
न तर्क न प्रमाण तुम्हारी आभा में तो जो है सभी कुछ टिका है प्रतीक्षा के मौन में… जब टूटता है मौन तनी प्रत्यंचा-सा हनाहन बाण लगते हैं हृदय …
लिया था जन्म दे दिया तुम्हें तभी तो सारा जीवन, मृत्यु तो आती है ख़ुदमुख्तार उसका क्या लेन-देन
जहाँ है आदि-अन्त वहीं है आवागमन- जीवन में जैसे अनन्त में होता है केवल प्रवेश होता ही नहीं कोई निकास पार पाया नहीं जा सकता जैसे प्रेम में प्रेम …
अमूमन दुपहर के बाद वाले घंटों में ही प्रैक्टिकल की कक्षाएँ लगती हैं जब दिन बह रहा होता है अनमनी मटमैली मन्थर नदी-सा लेकिन प्रयोगशाला में घुसते ही ओजोन, …
छप्पर-छानी सजी हुई है परवल पान रतालू की बारी में भीगी वर्षा ऋतु की गमक अभी तक बसी हुई है चैत गया बैसाख आ गया महुआ चूनेलगा लपट लू …
अरावली पर्वतमाला फिर हार मानकर आज और कुछ ज़्यादा पीछे खिसक गयी है भय से आँखें बन्द किये मैं देख रहा हूँ इन्द्रप्रस्थ के पास खांडव-वन को खाता छिड़ा …
नयी भूमि थी नया धरातल ताँबे का जल जस्ते का फल काँसे की कलियों के भीतर चाँदी की चाँदनी भरी थी पारे का पारावार मछलियाँ सोने की था मत्स्य …
वहीं पे जाकर अटक गया वो जहाँ से कोई निकल न पाए थका नहीं है मगर ये उलझन इधर से आगे किधर को जाए अगर ‘किधर’ का पता चले …
नगाड़ा बज रहा है धम्मा-धम्मा सीने में जलन बढ़ रही है मतवाला बेचैन हाथी उठाकर धरने ही वाला है पाँव विजय का जुलूस बढ़ रहा है विजय चतुर्दिक है …
जैसे-जैसे होता है सूर्य उदय कुहरा भी घना और घना होता जाता है अपनी सफेद नीलिमा में कुहरा दरअसल आकाश है बरसता हुआ रेशा-रेशा उड़ता, जैसे आँचल में ढँक …
तरह-तरह की दूरियाँ और विस्तार पार कर लौटा अपने द्वार सँभाले भुवनभार, चौखट पर झूले- झुके आ रहे हैं किवाँर मेरे ऊपर लाँघी देहरी-आँगन-दलान चूल्हा-चौका सारा मकान जिसमें अब …