Category: चिराग़ जैन
लोग बांधना चाहते हैं सम्बन्धों को परिभाषा में कैसे व्यक्त करूँ मैं मन की अनुभूति को भाषा में क्या बतलाऊँ मीरा संग मुरारी का क्या नाता है शबरी के …
डरी-सहमी पत्नी और तीन बच्चों के साथ किराए के मकान में रहता है रिक्शावाला। बच्चे रोज़ शाम खेलते हैं एक खेल जिसमें सीटी नहीं बजाती है रेल नहीं होती …
चाहता हूँ उन्हें ये अलग बात है वो मिलें ना मिलें ये अलग बात है एक अहसास से दिल महकने लगा गुल खिलें ना खिलें ये अलग बात है …
भारती आज तेरे ज़ख्म कौन धोएगा तेरे बँटते हुए आँचल में कौन सोएगा बम्बई ने जो धमाकों के ज़ख्म खाए हैं भूखे बच्चे जो गोधरा में बिलबिलाए हैं मंदिरों …
प्रेम की राह में पीर के गाँव हैं प्रेम ही जग में सबसे लुभावन हुआ प्रेम खोया तो सावन भी पतझर बना प्रेम पाया तो पतझर भी सावन हुआ …
प्यार के दो बसन्ती लम्हें छू गए और सूखा हुआ मन हरा हो गया सीप को बून्द का बून्द को सीप का प्रीत को प्रीत का आसरा हो गया …
तुम रूठी तो मैंने रोकर, कोई गीत नहीं लिखा इस ग़म में दीवाना होकर, कोई गीत नहीं लिखा तुम जब मेरे संग थी तब तक नज़्में-ग़ज़लें ख़ूब कहीं लेकिन …
चंद सस्ती ख्वाहिशों पर सब लुटाकर मर गईं नेकियाँ ख़ुदगर्ज़ियों के पास आकर मर गईं जिनके दम पर ज़िन्दगी जीते रहे हम उम्र भर अंत में वो ख्वाहिशें भी …
गुड्डी के पापा लन्च में टिफ़िन खोलते समय मूंद लेते हैं आँखों को क्योंकि देख नहीं पाते हैं रोटियों से झाँकते तवे के सुराखों को। ईमानदार क्लर्क समझ नहीं …
ज्वार भावनाओं का जो मन में उमड़ता है तब आखरों का रूप धरती है कविता आस-पास घट रहे हादसों की कीचड़ में कुमुदिनी बन के उभरती है कविता प्रेयसी …
चूल्हे-चौके में व्यस्त और पाठशाला से दूर रही माँ नहीं बता सकती कि ”नौ-बाई-चार” की कितनी ईंटें लगेंगी दस फीट ऊँची दीवार में …लेकिन अच्छी तरह जानती है कि …