Category: चंद्रभूषण
दूर देस में बहुत दूर वह सुंदर घर था पैसा था, पैसे से आई चीजें थीं थे जीवन के सारे उजियारे सरंजाम फिर वहीं कहीं कुछ कौंधा अजब बिजूखा …
ख़ुश रहो, ख़ुशी का समय है शाम को दफ़्तर से घर लौटो तो ख़ुशी की कोई न कोई ख़बर तुम्हारा इंतज़ार कर रही होती है। तुम्हारे साढ़ू ने बंगला …
बच्चे हर बार दिल लेकर पैदा होते हैं और कभी-कभी उनके दिल में एक बड़ा छेद हुआ करता है जिसमें डूबता जाता है पैसा-रुपया, कपड़ा-लत्ता, गहना-गुरिया, पी.एफ.-पेंशन फिर भी …
खुदा को हाज़िर-नाज़िर मानकर की गई शादियां जल्द ही ख़ुदा को प्यारी होती हैं और वे, जो की जाती हैं अग्नि को साक्षी मानकर, कभी लाल चूनर को समिधा …
शाम का वक़्त है तुम चौराहे पर पहुंच चुकी हो वहां एक भीड़ जमा हो रही है तुरत-फुरत कुछ देख लेने के लिए पंजों पर उचकते हुए लोग तेजी …
घने अंधेरे में उजाले का एक बुलबुला हर तरफ से आती रंगीन रोशनियां बीच में बैठे न जाने कितने लोग शायद यहां कुछ नाटक सा हो रहा है पहले …
रात में रेल चलती है रेल में रात चलती है खिड़की की छड़ें पकड़कर भीतर उतर आता है रात में चलता हुआ चांद पटरियों पर पहियों सा माथे पर …
इस देश में भूख से कोई नहीं मरता कालाहांडी, पलामू , यवतमाल और दीगर जिलों के आदिवासी मरते हैं सड़ा-गला खाना या जहरीली गेंठी खाकर ऐसी ही ऊलजलूल उनकी …
अगर हम होते हवाई द्वीप के वासी तो एक-दूसरे से अपने नाम बदल लेते सीथियन होते तो भरे जाम में खड़ा करते एक तीर कलाइयों में एक साथ घोंपकर …
रोशनियां बहुत तेज हैं और तुम्हारे सो जाने के बाद भी नींद की छाती पर मूंग दलती ये यहीं पड़ी रहती हैं फिर भी कैसा चमत्कार कि बची रह …
टिप-टिप टिप-टिप नन्हीं झींसियों से नम पहली बारिश की सुबह नर्म-नर्म-नर्म किन-किन कोनों से उचक-उचक झांकता बिछल-बिछल नजरों से भाग-भाग जाता रंग एक अजनबी गूंजता कहां-कहां उलांचता-कुलांचता सरगम के …
गाने के नाम पर मौके-बेमौके गला फाड़ चिल्लाने का समय है चमचों के एसएमएस गिनकर महानायक चुनवाने का समय है देखो हम कितने दुखी-दुखी-दुखी और हम ही कितने सुखी-सुखी-सुखी …
कितना बजा? कोई फ़र्क नहीं चलते चलो, बस चलते चलो सुन्न शहर के कठुआए आसमान में मरी मछलियों से उतराए तारे थके डैनों से रात खेता भटका एक समुद्री …
चिकोटी चिंतन शाहदरा से नोएडा की डग्गामार बस में बगल खड़ी लड़की के धोखे में इतनी देर से आपको चिकोटी काट रहे सज्जन की क्या कोई पहचान है? करने …
नाक से रिसता गाढ़ा ख़ून टूटा दांत और फूटा सिर लिए झपटता-सा खड़ा है पिंजड़े में बंद क्रोध और बेचारगी से फनफनाया हुआ अरावली के जंगलों का खूंखार तेंदुआ …
सितारों से उलझता जा रहा हूँ शबे फ़ुरकत बहुत घबरा रहा हूँ… एक झटके में कुछ लाख साल बढ़ गई उम्र एक क्षण मे पूरी ज़िंदगी याद आ गई …
काले सलेटी आकाश के बीचो बीच कलौंछ कत्थई लाल अंधेरा फेंकता चाक जितना बड़ा कटे चुकन्दर जैसा सूरज गीले चिपचिपे ग्रह का बहुत लम्बा बैंगनी सियाह दिन देख रहे …
रात नहीं नींद नहीं सपने भी नहीं न जाने कब ख़त्म हुआ इन्तजार ठण्डी बेंच पर बैठे अकेले यात्री के लिए एक सूचना महोदय जिस ट्रेन का इन्तजार आप …
एक शाम दफ्तर से तुम लौटते हो और पाते हो कि सभी जा चुके हैं अगल- बगल तेज घूमती रौशनियाँ हैं घरों पर छाई पीली धुंध के ऊपर अँधेरे …
प्लास्टिक के सस्ते मुखौटे सा गिजगिजा चेहरा आंखों में सीझती थकान बातें बिखरी तुम्हारी हर्फों तक टूटे अल्फाज़ तुमसे मिलकर दिन गुजरा मेरा सदियों सा आज इस मरी हुई …
जमीन छोड़ी होती तो इतने कलेस के बाद ज्यादा सोचने की जरूरत न पड़ती खींचकर खर्रा मुंह पर मारता और कहता ले लो इसे जहां लेना हो अपन तो …
इतने जहाजों में इतनी बार इतने मुल्क़ों का सफ़र गया नहीं फिर भी मन से ऊँचा उड़ने का डर अछोर खालीपन में खूँटी खोजते नज़र गड़ाए रखना अधर में …
हरियर फुनगी नजर न आए पीयर पात चहूँ दिस छाए हवा हिलोरि-हिलोरि बहे मोरे मन महं आज बसंत रहे गोरी तोरी देह बहुत सुकुआरी केस झकोरि-झकोरि कहे तोरे संग-संग …
सब पूछ रहे थे मुझ से इसमें ऐसा क्या है ऐसा क्या है, सोच-सोचकर जिसको अब तक मेरी आँख छलकती है कैसे मैं समझाता उनको इतनी उलझी बात कि …
एक सागर अथाह, कुहासे का सागर एक छोटी सी नाव, काग़ज़ की नाव एक नन्हा सा फूल, सरसों का फूल एक धीमा सा सुर, भौंरे का सुर एक सर-सर …