Category: चन्द्र प्रकाश त्रिपाठी
झूठ और धोखाधड़ी जब फ़ैली हुई है हर तरफ और आपके मुँह पर ही ताल ठोककर झूठ बोलकर लोग कहते हैं कि वे सत्यवादी हैं और सदा सत्य बोलते …
मैं किसलिए आया था घर छोड़कर इस नगर में और हर साल कहता हूँ कि मुझे घर जाना है, जबकि धीरे -धीरे बना लिए हैं घर हमने उस खाली …
अंत इतना समीप होने पर भी पता क्यों नहीं चला ! हम जलते रहे तब भी अपनी दुनियावी मायाओं में | कुछ कर लेते जप और तप भी , …
बहुत देर तक जलती रही लौ कभी होती तेज , तो कभी मद्धिम | लड़ती रही हवाओं से अकेले जब तेल ने भी छोड़ दिया साथ | बत्ती जलती …
शून्य, नि:शब्द ! शून्य, भावशून्य ! शून्य का नाद नाद का परिवर्तन ऊर्जा का उद्भव ऊर्जा, प्रकाश ! शक्ति अवतरण | भाव विभोर शून्य का नाद | शक्ति का …
भाव मन में डोल रहे सागर में उठते चक्रवात से लहरों की हिंडोल से | कर देते सागर मंथन निकलते- ऐश्वर्य भी, अभिशाप भी | पृथ्वी फिर नहीं रहती …
अखबार की कतरनों को लोग कूड़ेदान में डाल देते हैं जबकि काल्पनिकता की पुट लिए कविता और कहानी को लोग गले लगाते हैं और अमर साहित्य की श्रेणी में …
सच तो अब यही है कि सच सिर्फ होना जरूरी नहीं है, बल्कि सच का सच लगना ज्यादा जरूरी है | बात तो यहाँ तक आ गयी है कि …
शराबबंदी मैं शराब बंदी का समर्थक हूँ, इसीलिये शराब के बोतल में शराब के बदले पानी भरकर बेचता हूँ | लोग शराब की दूकान पर पिकेटिंग करते हैं और …
रावण का पुतला धू-धूकर जल उठा अग्निवाण के प्रघात से | लोगों ने जयघोष किया बुराई पर अच्छाई की विजय का होना बताया| हर साल अच्छाई की बुराई पर …
मन आजाद | आत्मा हुई संतुष्ट | धनी जीवन | मूक बधिर | जीवन दिशा तय | मुक्ति की राह | कार्य पूरा | हुई लक्ष्य की प्राप्ति | …
मैं ढूँढता रहा अंतर, अपनी बोली में अपनी वेश-भूषा में अपनी मजबूत मांसपेशियों में, अपने बालों के रंग में अपने गालों की चमक और चिकनाई में, अपनी हुनर में …
मैं ही हूँ हिन्दू , मैं मुसलमान | मैं ही हूँ सिख और मैं ही हूँ इसाई| मैं ही हूँ सभी धर्मों का सारांश | क्योंकि मैं हूँ एक …
नीले आकाश में पंक्तिबद्ध धवल पक्छी उड़ रहे थे और मैं टकटकी लगाए लगातार देख रहा था| नैसर्गिक दृश्य ! पंक्तियों को तोड़कर अपने संगियों को छोड़कर एक पक्छी …
आज मैंने फिर से सूची में अपना नाम देखा | सूची रोज-रोज छोटी होती जा रही थी | मेरे आगे वाले नाम कट चुके थे और पीछे वाले भी …
भोर हुई नभ लालिमा के साथ ही सूरज की तीखी किरणें निकल आयीं | दोपहर हुआ, शाम भी आई| पर किरणों में न तो आ पाया वह धार , …
अक्षर मिटते हैं लिखने के पहले ही सहेजने में उन्हें खो गया मेरा गद्य भी, पद्य भी |
सूरज, चाँद और बादल आज सूरज भी उगा कुछ देर से चिड़ियां भी चहचहाईं सूरज के आसमान में ऊपर आने पर | एक ही दिन में आज बादल भी …
विष और अमृत जल में मिलकर प्रिय पेय बनकर गले से उतरकर अंतड़ियों को गलाकर जिसने ले ली जान उस विष को हमने अपने अंतिम समय तक अपना प्रिय …
नर और नारायण में अंतर क्या? क्या नर नारायण की देन हैं या नर की नारायण देन हैं? प्रश्न संकुचित नहीं हुआ जबसे हमने इसके विस्तारण और समीचीन निस्तारण …
१. स्कूली दिन, उभरता व्यक्तित्व, उठती आकांक्षायें। निर्दोष मन, कल्पनाशील दिल, खुला मस्तिष्क मेरा। २. नजरें पड़ीं उनपर जबसे नींद गयी, बेचैन मन मंदिर में नृत्य करे मोर; पल …
तुम साँवला रंग, चमक चेहरे की लुभाती मुझे। आँखें खोजतीं तुम्हें हर जगह, हर कदम। पवन चाल से जब तुम आतीं, नाचता मन। धड़के दिल करता धक-धक फूलती साँसें! …
सुंदर मन। कपोतों पर भेजे शांति की पाती। बाँचे पाती को धोये मन निर्मल करे उससे। लिखे न उसे भोजपत्र पर या कागज पर। बाँचे व याद रखे और …
दुख की तरकश से निकला ऊफ् का एक उच्छ्वास ! मन की गहनता, बेबसी के स्याह लबादे पहन, अंधकार में बदल जाती है । चारों तरफ, फैला हुआ एक …
वृत्रासुर के अत्याचार से त्रस्त हो, देवता लोग पहुँचे ब्रह्मा के पास। और गुहार की तथा आर्त्तनाद किया कि अब नहीं सहन होता वृत्रासुर का त्रास। ब्रह्मा धीमान हैं …