Category: चन्द्र मोहन किस्कु
तुमसे है प्यार और तुम जन्म – जन्मांतर की दोस्त हो .तुम्हारे और मेरे इस पवित्र प्यार के बीचभला गरीबी – अमीरी का क्या काम ?उम्र,जाति-धर्म का क्या अर्थ …
इस देश के बच्चे उस देश के बच्चे घर में ,बाहर में मंदिर में ,मस्जिद में विद्यालय में,मदरसा में सीख रहे है केवल पड़ोसी देश के लिए गुस्सा मुँह …
मैं लिखूंगी प्यार उस दिन जिस दिन मनुष्यों की ईर्षा की आग से सुख जाएंगेपेड़-पौधों की हरे पत्ते उजड़ने आरम्भ होगा जंगल औरधँसना शुरू होगा ऊँची पहाड़ी मैं लिखूंगी …
वृक्ष का सोना और जागना फूलों पर गिरी शबनम निशब्द की शोर प्रतिरोध का जन्म धन की बालियां खिली फूल बच्चे की हँसीयुवा ह्रदय की प्यार गरीबों की कठोर …
जब आसमान रंग -विरंग बादलों से सजे रहेंगे सूरज के सामने नहीं रहेगा धुंध पेड़-पौधों में हरियाली रहेगा और सुख-शांति की बातें करेंगेजिस दिन की सुबह हर्ष और आरामवाली …
सुबह-सुबह पंक्षी उड़ते है आसमान की इस छोर से उस छोर सूरज की सन्देश को पहुंचाते है जैसे सुबह की अख़बार देते जा रहे है .तोता पंक्षी फूलों की …
हिंसा की इस काल में युद्ध की डरावनी समय में लम्बी निरासी और बेरंग जीवन में तुमसे चाह रहा हूँ थोड़ी सी केवल थोड़ी सी थोड़ी सी शांति थोड़ी …
आसमान में जब गुस्से का आग जल उठेगा जब खेत में उगेगा बोमा,बारूद और बन्दुक हवा में रहेगा विष धर्म दो रूपया भाव से बिकेगा मानवता खून से लतपथ …
मैं खेत में खलिहान में काम करता हूँ ईंट भट्टा मेंक्रेशर मशीनों में काम कर पेट भरता हूँ तुम्हारी भाषा मुझे आती नहीं देह की रंग मेरा अलग है …
खिड़की की उसपार से झांक रही वो दोनों आँखें सपना देखती है अनंत नीले आसमान का सुगंध बिखेरनेवाली हवा की और पंख पसारकर हर्ष और आनंद के साथ उड़ने …
इस देश के बच्चे उस देश के बच्चे घर में ,बाहर में मंदिर में ,मस्जिद में स्कूल में ,मदरसा में सीख रहे है केवल पड़ोसी देश के लिए गुस्सा …
जब छीन उजाड़ रहे थे लोगों का घर,आंगन कपड़े-लत्तेहरियाली जंगल खेत-खलिहान और मिट्टी के अंदर का पानी तब हूल का आग जला काला धुँआ निकला आसमान की ओरजब छीन …
आजकल कविताओं का मूल्य नहीं है गीत-संगीत का भी नहीं प्यार का तो थोड़ा सा भी मूल्य नहीं है .पर मूल्य बढ़ा है अब उन वस्तुओं का जो कभी …
वह कल-कल बह रही सबरनाखा नदी जिसकी गोद में खेला था बचपन में .देख रहा हूँ अब कल-कारखानों की प्यास बुझाने में सूख गई है .उसकी देह से लिपटी …
सप्ताह भर से भूखे पेट हूँ पेट की गड्ढे में आग जल रहा है धू-धू कर हुंह और बर्दास्त नहीं हो रहा है सर के ऊपर तक आग की …
तुम्हारा प्यार पाकर पहाड़-पर्वतों के पेड़-पौधे अति सुन्दर ‘हरे’हुए है नदी भी अपनी चाल बदली है कल-कल गीत गाकर बहती जा रही है कोयल भी गा रही है घर …
याद है तुम्हे कब माँ के साथ बहुत प्यार के साथ मुलाकात किया था जीवन की चढ़ाई-उतराईदुःख और कष्टों को सुलझाने के लिए अनुभवी पिता के पास गये हो …
एक आदमीसालों से पेट की भूखभुलाने के लिएउस बड़े गड्ढे को भरने के लिए ईश्वर से प्रार्थना किया अल्ला का भी नाम लिया गिरजे में जेशु के पास जाकर …
लिखी गई है बहुत सी कवितायेँ पहलेबहुत सारी जगहों पर अनेक विषयों पर देश और विदेशों में भी लिखी जाएगीबहुत सी कवितायेँ वहां जहाँ लिखी नहीं गई हैजानी,अनजानीदेशों पर …
मैं आनंद दायिनी आँगन मेंफूलों सा खिलता हूँ सुगंध फैलता हूँ .पंख फैलाकर उड़ती हूँ अनंत नील आसमान में शिकारियों की तीक्षन दृष्टि मुझ पर है डर लग रहा …
रौशनी के लिए ——————सुबह दहलीज में पड़ी अख़बार नहीं हूँ मैंपढ़ती हूँ सुबह -सुबह जल्दी में और शाम को फ़ेंक देते हो रद्दी के साथ कैलेंडर भी नहीं हूँ …
कित -कित खेलवाली बचपन —-चंद्र मोहन किस्कू ———————————-नगर की कंक्रीट जंगल में खो गई है मेरी कित -कित खेलवाली बचपन आंगन,जंहा लेटकर दादाजी से कहानी सुनता था अब वह …
बौद्ध की हंसी —————आज ही खबर मिला पुरे दुनिया के लोगों को मालूम हुआ कल राजस्थान के पोखरण में अहिंसा के पुजारी गौतम बौद्ध के जन्मदिन पर वैज्ञानिकों ने …
नींदवाली स्वप्न——————-रात की नींद में स्वप्न देखती है लड़की हंसती है निश्चिंत होकर खुशी से जाती है और दौड़ती रहती है रंगीन तितलियों के पीछे पंक्षी बनकर उड़ती रहती …
नगर ———–नगर में उगते नहीं है चौड़ी रिश्तेवाली हरी खेत नगर में उगते है तंग रिश्तेवाली गमले की फूल नगर में होता नहीं सोहराय ,साकरात और बाहा पर्व नगर …