Category: चंद्र कुमार जैन
सेचता हूँ लिखूं एक गीत किसी छोटी सी बात पर ! सुना है बड़ी-बड़ी बातों पर लिखे गये हैं बड़े-बड़े गीत परन्तु छोटी बात, क्या वास्तव में छोटी होती है ? …
आखिर कहाँ जाकर करता बसेरा ? जानता था लीन हो जाएगा एक क्षण में इसलिए आकर बस गया वह आदमी के मन में अब आदमी के मन में अंधेरा है …
एक क्षण के बाद दूसरा क्षण क्या है, हँसने के बाद रोना पड़े तो आश्चर्य क्या है ? कली जो खिल रही उद्यान की हर डाल पर, दूसरे क्षण टूटकर …
अंधेरा चाहे जितना घना हो पहाड़ चाहे जितना तना हो एक लौ यदि लग जाए एक कदम यदि उठ जाए कम हो जाता है अंधेरे का असर झुक जाती …
चीर हरण सत्ता की द्रोपदी का जाने कितने सालों से होता रहा है, और मेरे देश का कृष्ण कुंभकरण की तरह सोता रहा है ! अब मत ढूंढा कोई सावित्री …
जीवन के गीत लिखो ! कितनी भी पीड़ा हो तुम हँसते मीत दिखो संकल्पी आँखों में सूरज के सपने ले अंधियारी रातों में एक दिया बार दो पलको पर जो …
छोड़ो अब सपनों की बातें बीत गई नींदों की रातें याद रखो पर – नींदों को नीलाम नहीं करना है सपनों को बदनाम नहीं करना है ! बीते पल की …
न जाने खो गयी बिटिया मेरी तीन साल की उम्र से वह मेरी आँखों का नूर चली गई है मुझसे दूर खो गई है पैसों की खनक में बस …
चाहता हूँ मन खुले ऊन के गोले की तरह कि बुन सकूँ स्वेटर कविता की… चाहता हूँ धुना जाये यह मन कपास के गट्ठर की तरह कि पिरो सकूँ …
फूल खिले झर गये कॉटे मिले बिखर गये सुख आया चला गया दु:ख आया नहीं रहा मिलना और बिछुड़ जाना यही है जीवन का ताना-बाना नियम बस एक ही …
इतिहास में हो जब हास की इति तब होता है वि वास का अथ कहानी अतीत की सत्य साधना के नवनीत की भर देती है झोली खिल उठते हैं …
संत किसी अंत से नहीं डरता कठिनाइयॉ उसकी पगडंडियँ हैं उपसर्ग उसे पथ बताते हैं वन, उपवन, उद्यानों का सौंदर्य उसे रिझाता नहीं स्वर्ग का सुख वैभव भी उसे …
जीवनदान करें, बेला है बलिदानों की आज ! प्रात: से रवि टेर रहा है ललित प्रभा का बीज उगाओ धरती के कोने-कोने में मानवता का अलख जगाओ त्याग, दया, करूणा …
शब्दों की अर्थवत्ता को तोड़ने और व्यर्थ अर्थों की सत्ता को छोड़ने के बाद जो रची जाएगी वही होगी जागरण की कविता ! करेगी संघर्श वह दिन – प्रतिदिन सीमित …
अपने कद को ध्यान में रखकर उसने खड़ी की ऊँची दीवारें और बनाया एक गगनचुंबी महल अब क्या है महल ही जब ऊँचा हो गया तो आदमी का कद…..!!!
मूझे उनसे मिलना है जो कम से कम यह जानते हैं कि वे कुछ नहीं जानते ! मुझे उनसे मत मिलाना जो अपनी जानकारी को ही विज्ञान समझते हैं ! …
मधु-मादक रंगों ने बरबस, इस तन का श्रृंगार किया है ! रंग उसी के हिस्से आया, जिसने मन से प्यार किया है ! वासंती उल्लास को केवल, फागुन का अनुराग न …
लीक से हटकर अलग चाहे हुआ अपराध मुझसे, सच कहूँ, सूरज के आगे दीप मैंने रख दिया है ! प्रश्नों के उत्तर नये देकर उलझना जानता हूँ , और हर …