Category: बलकार सिंह ‘सवना’
धूमिल है यहाँ साफ चेहरा भी, ताक रहा है यहाँ,ढोंग की आस भी, मत साथ रखना अपनेपन का, यहाँ सब मतलब साध रहे है, कैसी फ़ितरतो की दुनिया है …
कुछ ख्वाब अधूरे है, जो सोने नहीं देते, एक कसक की तरह चुभते है, खोजते है जैसे मृग कस्तूरी को, न जाने क्यों अँधेरा अच्छा लगता है, जब ख्वाब …
“आतंक” चेहरा वही है,सूरत वही है, हैवान वही है,शैतान वही है, क्या हश्र होता होगा अल्लाह के दरबार में, जो नादान को,बेकसूर को,बेसहारा को,कमजोर को, उस छोटे मासूमो को …
यकीन नहीं है खुद पे टूट चूका हूँ, लेकिन हा,इतना जरूर कहूँगा, इतना यकीन है खुद की सोच पे कि, इस कदर बना लूंगा खुद को, आपकी जुबान कहे …
महक उठती है मिटटी की खुशबु, चहक उठती है कोयल की रंगीली राग, खिल जाती है मुस्कान चेहरे पर, सिर्फ बारिश की एक बून्द से !! लहरा उठती है …
वक़्त की डोर क्यों टूट चली ढलान की ओर, जब होते हुए अपनों के हाथों में बागडोर, अब लगता नही मानव अपनत्व की ओर ढहना है, चल छोड़ दे …
‘मन की उड़ान’ चल के देख जरा सा, सागर की गहराई की ओर, सोच,निचे भी तो जिंदगी है, है प्राण वहाँ भी,चाहे जीवों के लिए ही सही, जिंदगी तो …
बिन लगाम है ये मेरी जुबान, काट सकती है,तलवार की धार को, चुभन दे सकती है सुई को, छेद कर सकती है आसमान में, तोड़ सकती है जंजीरो को, …
सुबह होती है तो चिड़िया चहकती है, एक नए सवेरे का बिगुल बजाती है, लिए उड़ार मतवाली,चोगा चुगने चली है, जाग जाओ ऐ दुनिया वालो, क्यूंकि अब कलम चहकने …
आँच ना आये उसके दामन पर, जिस दामन ने बेदाग सहारा दिया है, हर दुःख सहकर बेमिसाल जीवन दिया है, ना चूका पाएंगे कर्ज जन्मों तक, ऐसा माँ ने …
लहर चली किनारों के उस पार जाने को, छोड़ चली बूँद-बूँद के सहारे को, बिखरा कर तल पर बने चारे को, क्यों आतुर है एक एक बूँद, जरे-जरे से …
“नन्हीं पुकार” एक सुबह हुई,लेकिन अंधकार के साथ, जब गूंजी थी किलकारी प्यारे से शोर के साथ, बुझ गया चिराग हवा के झोके के साथ, वो दो पल ही …