Category: अविनाश
हमारे दोस्त कुछ ऐसे हैं जो दरिया कहने पर समझते हैं कि हम किसी कहानी की बात कर रहे हैं उन्हें यक़ीन नहीं होता कि समंदर को समंदर के …
वहाँ जहाँ जीवित लोग काम करते हैं मुर्दा चुप्पी-सी लगती है जबकि ऐसा नहीं कि लोगों ने बातें करनी बंद कर दी हैं उनके सामने अब भी रखी जाती …
बजाते हैं नौकरी उठाते हैं जाम मेरी नौजवानी को बारहा सलाम थके गांव के मेरे बूढ़े हितैषी जो कहते कमाया है मैंने बहुत नाम वो भी… जो बचपन के …
जब सुख के मोती हों आंगन में बिखरे तो मुहब्बत का पुराना गीत याद आता है एक गोरैया आती है सूखे नलके की टोंटी पर दो पल के लिए …
कुछ वक्त कुछ बेवक्त मगर अक्सर तीन बजे या उससे थोड़ा पहले, जब धूप का ताप अधिक महसूस होता है हमारी कालोनी के अंत में या शुरू में बने …
मैं थोड़ा सभ्य हूं मुझसे ज्यादा सभ्य हैं वे लोग जिनके साथ मैं काम करता हूं वे मेरे उस्ताद नहीं हैं फिर भी ऐसा जताते हैं जैसे वे मुझे …
अजीब है सपनों की बातें कुछ होते हैं हाथ की पहुंच में और लगते हैं इतने दूर कि सिर्फ आह भरी जा सके कुछ होते ही हैं ख्याली पुलाव …
वह सब लिखा जा चुका जो सबसे बेहतर हो सकता है जिन्न की कहानी परियों की कविता गणित के सवाल विज्ञान की बारीकी विचार ज़िंदगी की उधेड़बुन में फूटते …
सब हैं अपना घर भी है मन खाली खाली रहता है कभी गांव की नदी कभी आमों के बीच ठहरता है वो इस्कूल कि जिसमें बचपन की सखियों का …
श्रावणी के लिए छोटी-सी चादर रजाई-सा भार फाहे-सी बेटी हवा पर सवार माँ की, बुआ की हथेली कहार रे हैया रे हैया रे डोला रे डोला चावल के चलते …
अब पीया नहीं जाता पानी मन बेमन रह जाता है प्यास बाक़ी आत्मा अतृप्त सन चौरासी में पहली बार देखा था फ्रिज सन चौरानबे में पीया था पहली बार …
हमारे पास है पृथ्वी जितना मन पेड़ पौधे अनंत नदी में बहते हुए मिट्टी के अनगिनत कण समंदर का खारा पानी जहां जहां गयी यह देह वहां वहां घूमा …
एक दिल्ली जो हम सब अपने साथ गांव से लाये खाली कमरे के कोने में पड़ी हांफ रही है खुरदरे फर्श पर एक काला रेडियो बोल रहा है चंद …
सर से पानी सरक रहा है आंखों भर अंधेरा उम्मीदों की सांस बची है होगा कभी सबेरा दुर्दिन में है देश शहर सहमे सहमे हैं रोज़ रोज़ कई वारदात …
किसी भी वक्त में उस एक आदमी के ख़िलाफ कुछ भी नहीं कहा जा सकता जो सबके बारे में कुछ भी कहने को आज़ाद है और आज़ाद भारत उसके …
बजाते हैं नौकरी उठाते हैं जाम मेरी नौज़वानी को बारहा सलाम थके गाँव के मेरे बूढ़े हितैषी जो कहते कमाया है मैंने बहुत नाम वो भी… जो बचपन के …
एक गाँव था जो कभी वही एक जगह थी जहाँ हम पहुँचना चाहते थे एक घर बनाना चाहते थे ज़िंदगी के आख़िरी वर्षों की योजना में खाली पड़ी कुल …