महज औरत सदियों से रसोई के धुंए उनकी आँखों में उतर रहे हैं, जाने कब से अंगीठी संग आंखें भी सुलग रही हैं. चूडियों कि खनक खोती रही …
मेरी राहों में कांटें बिछा करके भी, मेरे क़दमों को तुम अब न रोक पाओगे दर्द से यूँ ही नहीं है इश्क मुझको, कांटों से राह-ए-मंजिल का पता करना …
कुछ करवटें, कुछ कराहटें कुछ सन्नाटें , कुछ आहटें कुछ निशानियां, कुछ लिखावटें, कुछ ठहाकें, कुछ सिसकियाँ, कुछ लोरियाँ, कुछ किलकारियाँ कुछ मायूसियाँ , कुछ मुस्कुराहटें कुछ खामोशियाँ, कुछ …