Category: आशुतोष दुबे
बहुत-सी चीज़ों के पास है बहुत कुछ कहने के लिए एक फूल को कभी सुनिए सुनिए खिलने के क्षण की वह निःशब्द ध्वनि बड़े और छोटे होते दिनों के …
कभी आप लिखते हैं कोई ख़त कभी निजी डायरी कभी महीने के खर्च का हिसाब कभी-कभी कविताएँ भी कभी आपको लिखना पड़ता है स्पष्टीकरण कभी आप बनाते हैं किसी …
शाकुंतल के पन्नों से निकलती है शकुंतला मृच्छकटिकम से वसंतसेना दोनों नदी के तट पर पेड़ की छाँह में बैठकर देर तक करती रहती हैं कालिदास और शूद्रक की …
एक दिन आप ऐसा करते हैं चश्मा पहन लेते हैं और आँखों को रख देते हैं चश्मे के घर में जूतों को पहनने के बाद ख़याल आता है कि …
उसकी धौंकनी से दम फूलता है इच्छाओं को स्वप्न उसकी टापों में लगातार बजते हैं वह एक कौंध की तरह गुज़रता है पण्य-वीथियों में श्रेष्ठि उसे मुँह बाए देखते …