Category: अशोक तिवारी
उजाला उजाला भरो अपने अंदर कि अँधेरा दूर हो अपनी नज़रों से और हम देख पाएं बहुत सी अनचीन्ही चीज़ों को उन्हें भी, जो दिखाई तो देती हैं मगर …
इधर – उधर उधर न देखें श्रीमन् सही तस्वीर उधर नहीं, इधर है इधर ही है वो सब कुछ वांछित है जो आपको लहलहाते खेत बाग़-बगीचे वादियां-घाटियां सड़कें – …
सफ़दर हाश्मी के लिए एक इंसान ही था वह हमारे बीच हमारी ही तरह हँसते हुए गुनगुनाते हुए लगाते हुए ठहाके धकेलते हुए आसपास की हवा को हाथ फिराते …
अक्सर अक्सर मेरी यादों में एक चेहरा आता है लीक छोड़कर नई-नई जो राह बनाता है सपनों की बुनियाद रखी थी जो सालों पहले आज उन्हीं सपनों में कोई …