Category: अशोक रावत
अशोक रावत की ग़ज़लें 1 जो अमीर थे उन्हें महल दिये गये, और जो ग़रीब थे कुचल दिये गये. ख़ार बन के हम जिये तो कुछ नहीं हुआ, …
हाँ अकेला हूँ मगर इतना नहीं, तूने शायद गौर से देखा नहीं. तेरा मन बदला है कैसे मान लूँ, तूने पत्थर हाथ का फैंका नहीं. छू न पायें आदमी …
हर शटर पर आज फिर ताले नज़र आये, फिर क़वायद में पुलिसवाले नज़र आये. धूल की परतें दिखीं सम्वेदनाओं पर, आदमी के सोच पर जाले नज़र आये. पंक्ति में …
न गाँधी पर भरोसा है न गौतम पर भरोसा है, ज़माने को मगर बंदूक के दम पर भरोसा है. तुम्हारी बात तुम जानो, मैं अपनी बात करता हूँ मुझे …
भले ही उम्र भर कच्चे मकानों में रहे, हमारे हौसले तो आसमानों में रहे. हमें तो आज तक तुमने कभी पूछा नहीं, क़िले के पास हम भी …
ये तो है कि घर को हम बचा नहीं सके, चक्रवात पर हमें झुका नहीं सके. ये भी है की मंज़िलें कभी नहीं मिलीं, रास्ते मगर हमें थका …
वो समय वो ज़माना रहा ही नहीं, सच कहा तो किसी ने सुना ही नहीं. बात ये है हमें क्या मिला अंत में, हम ने ये कब कहा, कुछ …
जब देखो तब हाथ में ख़ंजर रहता है, उसके मन में कोइ तो डर रहता है | चलती रहती है हरदम एक आंधी सी, एक ही मौसम मेरे भीतर …