Category: आशीष त्रिपाठी
रथ पर चढ़कर वह रोती रही महलों में भी रोई पैरों के नीचे फूलों के रास्ते खुशबू से भरी हवायें आदेश की प्रतीक्षा में सर झुकाये खड़ी बांदियों की …
तुम्हारा हाथ पकड़कर इच्छा जागती है पृथ्वी को गेंद की तरह देखने की फिर मैं तुम्हारी उँगली पकड़ दिखाना चाहता हूँ सारी दाग़दार हवेलियाँ जिनमें रची जाती हैं अम्लीय …
तुम्हारा हाथ पकड़कर दुआ करता हूँ उड़ना सीखते पाखियों के लिए उन्हें घोंसलों में छोड़कर दाना बीनने गई उनकी माओं के लिए काम पर गए या भीख माँगते बच्चों …
तुम्हारा हाथ पकड़ना जैसे बेला के फूलों को लेना हाथों में जैसे दुनिया की सबसे छोटी नदी को महसूसना क़रीब जैसे छोटी बहर की ग़ज़ल का पास से गुजरना …
पिता जीते हैं इच्छाओं में पिता की इच्छाएँ उन चिरैयों का झुंड जो आता है आँगन में रोज़ पिता के बिखराए दाने चुगने वे हो जाना चाहते हैं हमारे …