Category: असर लखनवी
(1) यह महवीयत1 का आलम है, किसी से भी मुखातिब हूँ, जुबाँ पर बेतहाशा2 आप ही का नाम आता है। (2) यह सोचते रहे और बहार खत्म हुई, कहाँ …
(1) दिल को बर्बाद किये जाती है,गम बदस्तूर1 किये जाती है, मर चुकीं सारी उम्मीदे, आरजू है कि जिये जाती है। (2) देखो न आंखें भरकर किसी के तरफ …
(1) ताइरे-जाँ!1 कितने ही गुलशन तेरे मुश्ताक2 है, बाजुओं में ताकते – परवाज3 होना चाहिए। (2) तुझको है फिक्रे-तनआसानी4 ‘असर’, जिन्दगी कुर्बानियों का नाम है। (3) तुम्हारा हुस्न आराइश5, …
(1) जबीने1-सिज्दा में कौनेन2 की वुसअत3 समा जाए, अगर आजाद हो कैदे – खुदी4 से बंदगी5 अपनी। (2) जिन खयालात से हो जाती है वहशत6 दूनी, कुछ उन्हीं से …
(1) घुट-घुट के मर न जाए तो बतलाओ क्या करे, वह बदनसीब जिसका कोई आसरा न हो। (2) चाल वह दिलकश जैसे आये, ठंडी हवा में नींद का झौंका। …
(1) ख्वाब बुनिए, खूब बुनिए, मगर इतना सोचिए, इसमें है ताना ही ताना, या कहीं बाना भी है। (2) गम नहीं तो लज्जते1-शादी2 नहीं, बेअसीरी3 लुत्फे – आजादी नहीं। …
(1) खुद ही सरशारे – मये- उल्फत1 नहीं होना ‘असर’, इससे भर-भर कर दिलों के जाम छलकाना भी है। (2) खुद मेरी जौके-असीरी2 ने मुझे रखा असीर3, उसने तो …
(1) उस घड़ी देखो उसका आलम1, नींद में जब हो आंख भारी। (2) कभी मौत कहती है अलहजर2, कभी दर्द कहता है रहम3 कर, मैं वह राह चलता हूँ …
(1) इश्क है इक निशाते1-बेपायाँ2, शर्त यह है कि आरजू न हो। (2) उन लबों पै झलक तबस्सुम3 की, जैसे निकहत 4में जान पड़ जाये। (3) अहले-हिम्मत5 ने हुसूले-मुद्दआ6 …
(1) अच्छा है डूब जाये सफीना1 हयात2 का, उम्मीदो-आरजूओं का साहिल3 नहीं रहा। (2) अपने वो रहनुमा 4 हैं कि मंजिल तो दरकनार5, कांटे रहे – तलब में बिछाते …