Category: अरविन्द श्रीवास्तव
‘उम्मीदों के सितारे’ _अरुण कुमार तिवारी उम्मीदों के सितारे, चमके तब नील गगन में| जब उत्साहों के कटे पंख, तड़पे मन चातक निरख स्वाति, जब लक्ष्य नव्य फूटे कोपल, …
इतिहास से पढ़ाई की और करता हूँ चाकरी कविता की करता हूँ चौका वर्तन झाड़ू-बहारू रोपता हूँ फूल-पत्तियाँ लगाता हूँ उद्यान सौंपता हूँ उसे दिल-दिमाग शौर्य-पराक्रम सपने सारे के …
महत्त्वपूर्ण बातें अंत में लिखी जाती हैं महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ भी अंत में की जाती हैं और महत्त्वपूर्ण व्यक्ति भी अंत में आता है हम बहुत कुछ शुरूआत भी अंत …
संकट टला नहीं है सटोरियों ने दाँव लगाने छोड़ दिए हैं चौखट के बाहर अप्रिय घटनाओं का बाजार गर्म है खिचड़ी नहीं पक रही आज घर में बंदूक के …
उदासी छँट चुकी थी जैसे कई-कई दिनों बाद छँटता है माघ में कुहासा दुख भरे बारह दिन और कोई फल पककर तैयार हो चुका हो तेरहवें दिन कि जैसे …
उसकी साँसे गिरबी पड़ी हैं मौत के घर पलक झपकते किसी भी वक्त लपलपाते छुरे का वह बन सकता है शिकार पिछले दंगे में बच गया था वह अभी …
चिड़ियाँ बतिया रही थी कि हमारे हँसी-खुशी के सुकोमल दिन ख़त्म हो चले है जी घबरा रहा है इस सदी को देख कर इस बीच हमारे कई परिजनों ने …
वह धीरे से सरका क़रीब आया हल्की मुस्कान के साथ दबी किन्तु सख़्त जुबान मे बोला- ‘स्मैक लोगे?’ मै कहता नहीं तो भी मुझे लेना पड़ता ।
अर्सा गुज़र गया ज़मींदोज़ हो गये ज़मींदार साहब बहरहाल सब्ज़ी बेच रही है साहब की एक माशूका उसके हिस्से स्मृतियों को छोड कोई दूसरा दस्तावेज़ नहीं है फिलवक़्त, साहबज़ादों …
वक्त बूँदों के उत्सव का था बूँदें इठला रही थी गा रही थीं बूँदें झूम – झूम कर थिरक रही थीं पूरे सवाब में दरख्तों के पोर – पोर …
राइफलें जो किसी पत्ते की खड़खड़ाहट कि दिशा में तड़तड़ा उठी थीं और किसी संकट को टाल देने की विजय मुद्रा में चाहता था राइफलधारी मुस्कुराना जिसे बड़े ही …
मामूली आदमी हूँ असमय मरूंगा तंग गलियों में संक्रमण से सड़क पार करते हुए वाहन से कुचल कर या पुलिस लॉकअप में माफ़ करना मुझे अदा नहीं कर सकूंगा …
मज़े में हैं ईश्वर सारे ब्रह्मांड के ज्ञात-अज्ञात सहचर कीट-पतंग, अंधे-बहरे बाबा-भिखारी, ग्रीष्म और शरद माउस की-बोर्ड प्रेमी युगल साँसें धड़कनें पत्ते टहनियाँ शब्द मुहावरे सुख दुख स्वर्ग नरक …
प्रेमियों के रहने से मरे नहीं शब्द मरी नहीं परम्पराएँ कंसर्टों में गाए जाते रहे प्रेमगीत लिखी जाती रही प्रेम कविताएँ बचाए जाते रहे प्रेमपत्र डोरिया कमीज़ के कपड़े …
नृपति उदास है उसकी बेटी ने आज कोई कत्ल नहीं किया रक्त से आचमन ड्राइंग कक्ष में चांद-सितारों को क़ैद नहीं किया वाद्य यंत्रों की धुनाई, मौसमों को पिंजरे …
आप शापिंग की लिस्ट बनावें रिक्शा करें या स्कूटर विज्ञापन टटोलें कर्म में भरोसा रखें धर्म में विश्वास छोड़ें नहीं आप सोचें आपकी फितरत में है सोचना आनुवंशिक संक्रमण …
सुनता है तानाशाह टैंकों की गड़गड़ाहट में संगीत की धुन फेफड़े को तरोताज़ा कर जाती है बारुदी धुएँ की गंध उसके लिए नींद लाती है धमाकों की आवाज़ तानाशाह …
अक्सर कुछ चीज़ें हमारी पकड़ से दूर रहती हैं अगली गर्मी फ्रिज खरीदने की इच्छा और बर्फबारी में गुलमर्ग जाने की योजना कई बार हमसे दूर रहता है वर्तमान …
जब हम बुन रहे होंगे कोई हसीन ख्वाब तुम्हारे बिल्कुल करीब आकर बाँट रहे होंगे आत्मीयता प्रेम व नग्न भाषा रच रहे होंगे कविताएँ तभी एक साथ उठ खड़े …
कंपकपाती ठंढ में आग की बोरसी दहकती गर्मी में ताड़ के पंखे और अंधेरे में लालटेन हैं मेरे पास लाता हूँ रोज़-रोज़ चोकर-खुद्दी खिलाता हूँ साग-पात धर में बकरियों-सी …
नहीं लगती कौवे की पंचायत बिजली के तारों पर घर के आस-पास काँव-काँव करते हुए कौवे ने अपनी मियाद पूरी कर ली है या कि अनायास खत्म हो गया …
एक युवक सोच रहा है धरती और धरती के बाशिन्दों के लिए यह समय बेहद खराब है सामने की छत से एक स्त्री छलांग लगाकर कूदना चाहती है पड़ोस …
उलझन सुलझते ही कुछ ने फेर लिया मुँह कुछ ने तोड़ लिया नाता कुछ जुट गए उलझन से त्रस्त लोगों की तलाश में और कुछ आ धमके उलझन भरे …
आधा सेर चाउर पका बुढ़वा ने खाया — बुढ़िया ने खाया लेंगरा ने खाया — बौकी ने खाया कुतवा ने खाया चवर-चवर आध सेर चाउर नहीं पका बुढ़वा ने …
हमें सभी के लिए बनना था और शामिल होना था सभी में हमें हाथ बढ़ाना था सूरज को डूबने से बचाने के लिए और रोकना था अंधकार से कम …