Category: अरुण चन्द्र रॉय
लौटते हुए मेरे साथ मैं नहीं था छूट गया था वह वही आँगन में पसरे हुए तुम्हारे कपड़ों के साथ अमरूद के पेड़ से लटक गया और हरसिंगार की …
1. कभी नंगे पैरों में लगा कर देखो लाल मिट्टी जान पाओगे तुम बूट भरे पैरों के नीचे रौंदी जा रही इस मिट्टी का लाल रुदन 2. कभी नंगे …
छीलते हुए मटर गृहणियाँ बनाती हैं योजनाएँ कुछ छोटी, कुछ लम्बी कुछ आज ही की तो कुछ वर्षों बाद की पीढ़ी दर पीढ़ी घूम आती हैं इस दौरान । …
कई प्रकार की होती है भूख और कई आकार की भी होती हैं जैसे कहीं आसमान के वितान-सी विस्तृत भूख तो कहीं संतोष के भाव-सी लघु भूख भूख के …
1. पत्तों का पत्तों से संवाद थम गया है जंगल में जब से बूटों का पहरा पड़ गया है 2. पत्तों ने खो दिए हैं अपने रंग जब से …
चलो भाई बड़े हो गए हैं हम अब कर लेते हैं बँटवारा माँ के दूध का हिसाब लगा लेते हैं बड़े ने कितना पिया मँझले ने कितना पिया और …
भाई साहब ए़क स्कूल चला था मेरे गाँव के लिए दिल्ली से कोई साठ साल पहले और पीढियाँ गुज़र गईं स्कूल के इन्तज़ार में रौशनी से महरूम ख़बर नहीं …
मुस्कुराते हैं अख़बारों के पन्नों के बीच फँसे, गुँथे, लिपटे पैम्फ़लेट ख़बरों पर और उनकी घटती विश्वसनीयता पर ख़बरों के कानो में जा के ज़ोर से चिल्लाते हैं पूरी …
हुज़ूर पीढ़ियों से सड़े हुए हैं हमारे दाँत हमारे बाबा के बाबा थे ‘बलेल’ बुरबक कहे जाते थे वे सो वे बलेल थे ए़क साँस में घंटो तक शहनाई …
जब थक जाती हैं बाँहें ख़ुद से दुगुना वज़न उठाते-उठाते और कंधे मना कर देते हैं देने को संबल लेकिन फिर भी जलते सूरज के नीचे पूरी करनी होती …
1. नदी और पुल के बीच है अनोखा रिश्ता, पुल खड़ा करता रहेगा इन्तज़ार नदी यूँ ही बहती रहेगी अनवरत 2. नदी लगातार मारती रहेगी हिलोर पुल यो ही …
तालिकाओं में खोए आँकड़ों के जाल में उलझे-उलझे हम मानो अंक अंक ना हो… तुम्हारा अंक हो !
जूता पैरों में होता है सभी जानते हैं कोई नई बात नहीं लेकिन जूता पैरो की ठोकरों में रहता है सदैव झेलता हुआ तिरस्कार अवहेलना हाँ मैं कर रहा …
1. क्या तुमने भी महसूस किया है इन दिनों ख़ूबसूरत होने लगे हैं क़िताबो की जिल्द और पन्ने पड़े हैं खाली 2. क्या तुम्हे भी दीखता है इन दिनों …
बाज़ार है सजा ईश्वर और इन्टरनेट दोनों का । ईश्वर और इन्टरनेट इक जैसे हैं ईश्वर विश्वव्यापी है इन्टरनेट भी कण-कण में समाए हुए हैं दोनों हर ज्ञानी-अज्ञानी के …
1. सही आँच पर पकती है रोटी नरम और स्वादिष्ट बताया था तुमने जब खो रहा था मैं अपना धैर्य 2. जब तक चूल्हे में रहती है आँच रहती …
1. यह समय शब्दों के ख़ामोश होने का है उनके अर्थ ढूँढने का नहीं क्योंकि इन दिनों बोलते हैं आँकड़े 2. यह समय भूखमरी का नहीं है क्योंकि आँकड़ों …