Category: अनवर सुहैल
क्या हरदम ऐसे ही चलेगा हम ही देखें हम ही करें जुगत हम ही भोगें हम ही दूर करें दुनिया के दुःख-दर्द… क्या हरदम ऐसे ही चलेगा कब तक …
शोर-शराबे के बीच नही सुनता कोई उन आहों-कराहों को जिनका कोई अपना सौदर्य-शास्त्र नही जिनका कोई लिखित-मौखिक इतिहास नही जिनके पास श्रुत-परम्परा के योग नही जिनकी कोई गुरु-शिष्य परम्परा …
काली-अँधेरी सुरंगों में टिमटिमाती सी रौशनी लेकर चिपचिपाती सी देह में कांटे चुभ रहे, टीस-टीस पीड़ा है ज़िन्दगी खेल नही सर्कस का हर कदम एक नया खतरा है मौत …
मैं जहां था भाई वहाँ नही था वसंत… वहां कभी नही था वसंत…. मेरे आसपास था सिर्फ घुप्प काला-अंधियारा केप-लेम्प की रौशनी के घेरे से झांकती पसीने से चिपचिपी …
खोज रही उनकी टोही निगाहें मुझमे क्या-क्या उत्पाद खरीद सकता हूँ मैं मेरी ज़रूरतें क्या हैं क्या है मेरी प्राथमिकताएं कितना कमाता हूँ, कैसे कमाता हूँ खर्च कर-करके भी …
कितनी दूर से बुलाये गये नाचने वाले सितारे कितनी दूर से मंगाए गए एक से एक गाने वाले और तुम अलापने लगे राग-गरीबी और तुम दिखलाते रहे भुखमरी राज-धर्म …
कवि बतियाता है सिर्फ मित्र-कवि से चंद कूट संकेतों के ज़रिए जिस तरह एक किसान, दूसरे किसान से एक महिला, दूसरी महिला से एक चिड़िया, दूसरी चिड़िया से कवि …
‘लेबर-रूम’ के बाहर खिन्न हैं आयाएं नर्सें ख़ामोश आज की ‘बोहनी’ बेकार हुई ‘ओ गॉड, ये ठीक नहीं हुआ!’ शकीला इस बार भी पुत्र की आस में नौ …
कौन कहता है वह टूट गए हैं ज़रा देखिए ध्यान से बढ़ती उम्र के कारण वह कुछ झुके ज़रूर हैं झुकता है जैसे कोई फलदार पेड़ झुकती जैसे फूलों …
पदयात्रियों, मोटर-गाड़ियों से बेपरवाह बीच सड़क पर क्रिकेट खेलते बच्चे डरा नहीं करते पिता-चाचा या दादा की घुड़कियों से भुनभुनाएं बुजुर्ग चिड़चिड़ाएं अध्यापक तो क्या करें बच्चे पाकिस्तान के …
कर रहा हूं इकट्ठा वो सारे सबूत वो सारे आंकडे जो सरासर झूटे हैं और बे-बुनियाद हैं जिसे बडी खूबसूरती से तुमने सच का जामा पहनाया है कितना बडा छलावा …
होना चाहिए जुनून तभी मिल सकता है सुकून वरना किसे फुर्सत है किसी का नाम ले तुम्हारा जुनून ही तुम्हारी पहचान है जो देती है तुम्हें नित नई ऊंचाईयां …