Category: अनुज भार्गव
कहानी बीज की अभी मुझे मेरे हाल पर जमीं पे पड़ा रहने दो बच्चा हूँ अभी कच्चा हूँ प्यार से मेरी ओर देख कर मुझे जमीं की नमी में …
नव वर्ष की लालिमा से पल तो रुकता नहीं समय का अंश जो ठहरा हर पल हर छण नया एहसास देता उन पलों के संग संग …
बहशी दरिंदे समाज में मानव को क्या हो गया कितना बहशी वो हो गया डर उनसे कोसों दूर हो गया लगता है पशु से भी बत्तर हो गया मन …
ठिठुरन सफ़ेद धुएँ की चादर में लिपटी सुबह की लालिमा क्यूँ यूं छिपती ठण्ड में रंग कोहरे का गहरा हो जाता तमाम गरम कपड़े पहनने को दिल मचल जाता …
मेरी तो उम्र हो चुकी वर्षों से यहाँ खड़ा हूँ कई सावन झेल चुका शीत को निहार ता रहा मौसम के सारे उतार चड़ाव भी देखे तपती धूप सहकर …