Category: अमिताभ त्रिपाठी ‘अमित’
था यहाँ बहुत एकान्त, बंधु नीरव रजनी-सा शान्त, बंधु दुःख की बदली-सा क्लान्त, बंधु नौका-विहार दिग्भ्रान्त, बंधु ! तुम ले आये जलती मशाल उर्जस्वित स्वर देदीप्य भाल हे ! कविता के …
मुझे याद आई धरती की। मैनें देखा, मैनें देखा क्षीणकाय तरुणी, वृद्धा सी लुंचित केश, वसन मटमैले, निर्वसना सी घुटनों को बाँहों में कस कर देह सकेले मुझे याद …
स्मृति के वे चिह्न उभरते हैं कुछ उजले कुछ धुंधले-धुंधले। जीवन के बीते क्षण भी अब कुछ लगते है बदले-बदले। जीवन की तो अबाध गति है, है इसमें अर्द्धविराम …
सपनों को कल रात जलाया हर करवट पर चुभते थे जो घुटन बढ़ाते घुटते थे जो मुझे पीसते पिसते थे जो रोते कभी सिसकते थे जो मन पर भारी …
अनुकरण की होड़ में अन्तःकरण चिकना घड़ा है और रिश्तों का पुराना व्याकरण बिखरा पड़ा है। दब गया है कैरियर के बोझ से मासूम बचपन अर्थ-वैभव हो गया है …
रात्रि के अंन्तिम प्रहर तक तुम न मुझसे दूर जाना। आज होठों पर तेरे लिखना है मुझको इक तराना। कौन जानें कल हवा अलकों से छन कर मिल न …
मैं अजन्मा, जन्मदिन किसका मनाऊँ? पंचभूतों के विरल संघात का? क्षरित क्षण-क्षण हो रहे जलजात का? दो दिनो के ठाट मृण्मय गात का या जगत की वासना सहजात का? …
प्रीति अगर अवसर देती तो हमनें भाग्य संवारा होता। कमल दलों का मोह न करते आज प्रभात हमारा होता। नीर क्षीर दोनों मिल बैठे बहुत कठिन पहचान हो गई, …
पथ जीवन का पथरीला भी, सुरभित भी और सुरीला भी। गड्ढे, काँटे और ठोकर भी, है दृष्य कहीं चमकीला भी। पथ जीवन का पथरीला भी … … पथ के …
तुम मुझको उद्दीपन दे दो गीतों का उपवन दे दूँगा थोड़ा सा अपनापन देदो मैं सारा जीवन दे दूँगा। मेरा तुमको कुछ दे देना जगप्रचिलित व्यापार नहीं है और …
कैसी हवा चली उपवन में सहसा कली-कली मुरझाई। ईश्वर नें निश्वास किया या विषधर ने ले ली जमुहाई। कैसी हवा चली उपवन में … …. साँझ ढले पनघट के …
आओ साथी जी लेते हैं विष हो या अमृत हो जीवन सहज भाव से पी लेते हैं सघन कंटकों भरी डगर है हर प्रवाह के साथ भँवर है आगे …
अहम की ओढ़ कर चादर फिरा करते हैं हम अक्सर अहम अहमों से टकराते बिखरते चूर होते हैं मगर फिर भी अहम के हाथ हम मजबूर होते हैं अहम …
अपने दोष दूसरों के सिर पर मढ़ कर रोज घूँट-दो-घूँट दम्भ के पीते हैं। ज्योति-पुंज के चिह्न टाँगकर दरवाजों पर अपने-अपने अंधकार में जीते हैं। प्रायः तन को ढकने …
चाहता हूँ कि तेरा रूप मेरी चाह में हो तेरी हर साँस मेरी साँस की पनाह में हो मेरे महबूब तेरा ख़ुद का जिस्म न हो मेरे एहसास की …
हालात से इस तरह परेशान हुये लोग तंग आके अपने आप ही इंसान हुये लोग जो थे खु़दी पसन्द उन्हे फ़िक्रे-ख़ुदा थी जो थे खु़दा पसन्द वो हैवान हुये लोग जिस खूँ …
हम अपने हक़ से जियादा नज़र नहीं रखते चिराग़ रखते हैं, शम्सो-क़मर नहीं रखते। हमने रूहों पे जो दौलत की जकड़ देखी है डर के मारे ये बला अपने घर …
सबको तुम अच्छा कहते हो, कानो को प्रियकर लगता है अच्छे हो तुम किन्तु तुम्हारी अच्छाई से डर लगता है। सुन्दर स्निग्ध सुनहरे मुख पर पाटल से अधरों के …
लिहाफ़ों की सिलाई खोलता है कोई दीवाना है सच बोलता है। बेचता है सड़क पर बाँसुरी जो हवा में कुछ तराने घोलता है। वो ख़ुद निकला नहीं तपती सड़क …
रोज़ जिम्मेदारियाँ बढ़ती गईं। ज़ीस्त की दुश्वारियाँ बढ़ती गईं। पेशकदमी वो करे मैं क्यों बढ़ूँ, इस अहम में दूरियाँ बढ़ती गईं। आप भी तो खुश नहीं, मैं भी उदास किसलिये फिर तल्ख़ियाँ बढ़ती …
ये रवायत आम है क्यों मुँह छिपाया कीजिये। सीधे रस्ते बन्द हैं पीछे से आया कीजिये। यूँ यकीं करता नहीं कोई उमूमन आपका फिर भी बहरेशौक़ कुछ वादे निभाया …
यूँ चम्पई रंगत प सिंदूरी निखार है इंसानी पैरहन में गुले-हरसिंगार है। धानी से दुपट्टे में बसंती सी हलचलें मौज़े-ख़िरामे-हुस्न कि फ़स्ले-बहार है। गुजरा है कारवाने-क़ायनात इधर से ये कहकशाँ की धुन्ध भी मिस्ले-गुबार है। …
याद का इक दिया सा जलता है। लौ पकड़ने को दिल मचलता है। ख़्वाब हो या कि हक़ीक़त दुनियाँ, दम तो हर हाल में निकलता है। वक़्त बेपीर है …
मैं बहरहाल बुत बना सा था वो भी मग़रूर और तना सा था कुछ शरायत दरख़्त ने रख दीं वरना साया बहुत घना सा था साक़िये-कमनिगाह से अर्ज़ी जैसे …
मत मंसूबे बाँध बटोही, सफर बड़ा बेढंगा है। जिससे मदद मांगता है तू, वह ख़ुद ही भिखमंगा है। ऊपर फर्राटा भरती हैं, मोटर कारें नई – नई, पुल के …