विश्वरूप admin 30/06/2014 अमित कल्ला No Comments दोनों ही उस आकाश के परपार हो जाते हैं पलक शून्य दृष्टि संग उसी एक लय में थिर, यकायक अपनी ही गति के विपरीत सचेतन धारण करने लगते कुंडलिनी … [Continue Reading...]
पार – अपार admin 30/06/2014 अमित कल्ला No Comments बहते हैं रंग दिशाएं भी बहती हैं, स्मृतियाँ बूंद -बूंद उन्ही – सी किन्ही अल्पविरामों के नितांत, पार – अपार । [Continue Reading...]