Category: आलोक धन्वा
जहाँ नदियाँ समुद्र से मिलती हैं वहाँ मेरा क्या है मैं नहीं जानता लेकिन एक दिन जाना है उधर उस ओर किसी को जाते हुए देखते कैसी हसरत भड़कती …
उतने सूर्यास्त के उतने आसमान उनके उतने रंग लम्बी सडकों पर शाम धीरे बहुत धीरे छा रही शाम होटलों के आसपास खिली हुई रौशनी लोगों की भीड़ दूर तक …
पृथ्वी घूमती हुई गयी किस ओर कि सेब में फूल आने लगे छोटे-छोटे शहरों के चाँद अलग-अलग याद आये बारिश से ऊपर उठते हुए उनका क़रार घास की पत्तियों …
पुराने शहर उड़ना चाहते हैं लेकिन पंख उनके डूबते हैं अक्सर ख़ून के कीचड़ में ! मैं अभी भी उनके चौराहों पर कभी भाषण देता हूँ जैसा कि मेरा काम …
जब समुद्र उठ रहा था चाँद की ओर पश्चिम भारत के अंतिम किनारे पर उस शाम मैंने उसे देखा और चाँद ट्राम के पहिए जितना बड़ा और वह शहर …
पुराने शहर की इस छत पर पूरे चांद की रात याद आ रही है वर्षों पहले की जंगल की एक रात जब चांद के नीचे जंगल पुकार रहे थे …
तुम भीगी रेत पर इस तरह चलती हो अपनी पिंडलियों से ऊपर साड़ी उठाकर जैसे पानी में चल रही हो ! क्या तुम जान-बूझ कर ऐसा कर रही हो क्या …
स्त्रियों ने रचा जिसे युगों में युगों की रातों में उतने निजी हुए शरीर आज मैं चला ढूँढने अपने शरीर में।
शरद की रातें इतनी हल्की और खुली जैसे पूरी की पूरी शामें हों सुबह तक जैसे इन शामों की रातें होंगी किसी और मौसम में
सूँढ़ जैसे लंबे इस शंख के भीतर गुज़र रहा हूँ जल की कुल्हाड़ियाँ इसे चीर रही हैं और मैं कुल्हाड़ियों को चीर रहा हूँ शंख के बाहर माँ खड़ी …
तब वह ज़्यादा बड़ा दिखाई देने लगा जब मैं उसके किनारों से वापस आया वे स्त्रियाँ अब अधिक दिखाई देती हैं जिन्होंने बचपन में मुझे चूमा वे जानवर जो …
रेशमा हमारी क़ौम को गाती हैं किसी एक मुल्क को नहीं जब वे गाती हैं गंगा से सिन्धु तक लहरें उठती हैं वे कहाँ ले जाती हैं किन अधूरी, …
हर भले आदमी की एक रेल होती है जो माँ के घर की ओर जाती है सीटी बजाती हुई धुआँ उड़ाती हुई।
घरों के भीतर से जाते थे हमारे रास्ते इतने बड़े आँगन हर ओर बरामदे ही बरामदे जिनके दरवाज़े खुलते थे गली में उधर से धूप आती थी दिन के …
रात रात तारों भरी रात मीर के सिरहाने आहिस्ता बोलने की रात
क पुरानी कार रंगी जा रही है छलकने तक रंगी जायेगी।
प्यार पुराने टूटे ट्रकों के पीछे मैंने किया प्यार कई बार तो उनमें घुसकर लतरों से भरे कबाड़ में जगह निकालते शाम को अपना परदा बनाते हुए अक्सर ही …
मीर पर बातें करो तो वे बातें भी उतनी ही अच्छी लगती हैं जितने मीर और तुम्हारा वह कहना सब दीवानगी की सादगी में दिल-दिल करना दुहराना दिल के …
उसे भूलने की लड़ाई लड़ता रहता हूँ यह लड़ाई भी दूसरी कठिन लड़ाइयों जैसी है दुर्गम पथ जाते हैं उस ओर उसके साथ गुजारे दिनों के भीतर से उठती …
मैं उसका मस्तिष्क नहीं हूँ मैं महज उस भूखे बच्चेस की आँत हूँ। उस बच्चे की आत्मा गिर रही है ओस की तरह जिस तरह बाँस के अँखुवे बंजर …
एक घर की जंजीरें कितना ज्यादा दिखाई पड़ती हैं जब घर से कोई लड़की भागती है क्या उस रात की याद आ रही है जो पुरानी फिल्मों में बार-बार …
बारिश एक राह है स्त्री तक जाने की बरसता हुआ पानी बहता है जीवित और मृत मनुष्यों के बीच बारिश एक तरह की रात है एक सुदूर और बाहरी …
अगर अनंत में झाडियाँ होतीं तो बकरियाँ अनंत में भी हो आतीं भर पेट पत्तियाँ तूंग कर वहाँ से फिर धरती के किसी परिचित बरामदे में लौट आतीं जब …
दुनिया से मेरे जाने की बात सामने आ रही है ठंडी सादगी से यह सब इसलिए कि शरीर मेरा थोड़ा हिल गया है मैं तैयार तो कतई नहीं हूँ …
देखना एक दिन मैं भी उसी तरह शाम में कुछ देर के लिए घूमने निकलूंगा और वापस नहीं आ पाऊँगा ! समझा जायेगा कि मैंने ख़ुद को ख़त्म किया ! नहीं, …