Category: आलम खुर्शीद
हाथ पकड़ ले अब भी तेरा हो सकता हूँ मैं भीड़ बहुत है, इस मेले में खो सकता हूँ मैं पीछे छूटे साथी मुझको याद आ जाते हैं वरना …
हर घर में कोई तहख़ाना होता है तहख़ाने में इक अफ़साना होता है किसी पूरानी अलमारी के ख़ानों में यादों का अनमोल ख़ज़ाना होता है रात गए अक्सर दिल …
हर इक दीवार में अब दर बनाना चाहता हूँ खुदा जाने मैं कैसा घर बनाना चाहता हूँ ज़मीं पर एक मिटटी का मकां बनता नहीं है मगर हर दिल …
हमेशा दिल में रहता है, कभी गोया नहीं जाता जिसे पाया नहीं जाता, उसे खोया नहीं जाता कुछ ऐसे ज़ख्म हैं जिनको सभी शादाब रखते हैं कुछ ऐसे दाग़ …
हमारे सर प ही वक़्त की तलवार गिरती है कभी छत बैठ जाती है, कभी दीवार गिरती है पसन्द आई नहीं बिजली को भी तक़सीम आँगन की कभी इस …
हम को गुमाँ था परियों जैसी शहजादी होगी किस को ख़बर थी वह भी महलों की बांदी होगी काश! मुअब्बिर बतला देता पहले ही ताबीर खुशहाली के ख़्वाब में …
हथेली की लकीरों में इशारा और है कोई मगर मेरे तआकुब में सितारा और है कोई किसी साहिल पे जाऊं एक ही आवाज़ आती है तुझे रुकना जहाँ है …
लुत्फ़ हम को आता है अब फ़रेब खाने में आज़माए लोगों को रोज़ आज़माने में दो घड़ी के साथी को हमसफ़र समझते हैं किस क़दर पुराने हैं , हम …
रेंग रहे हैं साये अब वीराने में धूप उतर आई कैसे तहख़ाने में जाने कब तक गहराई में डूबूँगा तैर रहा है अक्स कोई पैमाने में उस मोती को …
रंग बिरंगे सपने रोज़ दिखा जाता है क्यों बैरी चाँद हमारी छत पर आ जाता है क्यों क्या रिश्ता है आखिर मेरा एक सितारे से रोज़ वो कोई राज़ …
रंग-बिरंगे ख़्वाबों के असबाब कहाँ रखते हैं हम अपनी आँखों में कोई महताब कहाँ रखते हैं हम यह अपनी ज़रखेज़ी है जो खिल जाते हैं फूल नए वरना अपनी …
याद आता हूँ तुम्हें सूरज निकल जाने के बाद इक सितारे ने ये पूछा रात ढल जाने के बाद मैं ज़मीं पर हूँ तो फिर क्यों देखता हूँ आसमां …
मिल के रहने की ज़रूरत ही भुला दी गई क्या याँ मुहब्बत की रिवायत थी मिटा दी गई क्या बेनिशाँ कब के हुए सारे पुराने नक़शे और बेहतर कोई …
बीच भँवर में पहले उतारा जाता है फिर साहिल से हमें पुकारा जाता है ख़ुश हैं यार हमारी सादालौही पर हम ख़ुश हैं क्या इसमें हमारा जाता है पहले …
बह रहा था एक दरिया ख़्वाब में रह गया मैं फिर भी प्यासा ख़्वाब में जी रहा हूँ और दुनिया में मगर देखता हूँ और दुनिया ख़्वाब में रोज़ …
नींद पलकों में धरी रहती थी जब ख़यालों में परी रहती थी ख़्वाब जब तक थे मेरी आंखों में शाख़े- उम्मीद हरी रहती थी एक दरिया था तेरी यादों …
देख रहा है दरिया भी हैरानी से मैं ने कैसे पार किया आसानी से नदी किनारे पहरों बैठा रहता हूँ कुछ रिश्ता है मेरा बहते पानी से हर कमरे …
दरियाओं पर अब्र बरसते रहते हैं और हमारे खेत तरसते रहते हैं अपना ही वीरानी से कुछ रिश्ता है वरना दिल भी उजड़ते बसते रहते हैं उनको भी पहचान …
दरवाज़े पर दस्तक देते डर लगता है सहमा-सहमा-सा अब मेरा घर लगता है साज़िश होती रहती है दीवार ओ दर में घर से अच्छा अब मुझको बाहर लगता है …
थपक-थपक के जिन्हें हम सुलाते रहते हैं वो ख्वाब हम को हमेशा जगाते रहते हैं उम्मीदें जागती रहती हैं, सोती रहती हैं दरीचे शम्मा जलाते-बुझाते रहते हैं न जाने …
तोड़ के इसको वर्षो रोना होता है दिल शीशे का एक खिलौना होता है महफ़िल में सब हँसते-गाते रहते है तन्हाई में रोना-धोना होता है कोई जहाँ से रोज़ …
जिस कि दूरी वज्हे-ग़म हो जाती है पास आकर वो ग़ैर अहम हो जाती है मैं शबनम का क़िस्सा लिखता रहता हूँ और काग़ज़ पर धूप रक़म हो जाती …
जब मिटटी खून से गीली हो जाती है कोई न कोई तह पथरीली हो जाती है वक़्त बदन के ज़ख्म तो भर देता है लेकिन दिल के अन्दर कुछ …
चारों तरफ जमीं को शादाब देखता हूँ क्या खूब देखता हूँ,जब ख़्वाब देखता हूँ इस बात से मुझे भी हैरानी हो रही है सेहरा में हर तरफ मैं सैलाब …
ख़बर सच्ची नहीं लगती नए मौसम के आने की मेरी बस्ती में चलती है हवा पिछले ज़माने की मेरी हर शाख को मौसम दिलासे रोज़ देता है मगर अब …