Category: अकबर इलाहाबादी
ठहरजाता है वक़्त,थम जाता है वक़्त, वक़्त की मिज़ाज़ क्या? हार जाते है सब। ज़रा देखो, जरा सोचो! निर्जिव जो,भागे तेज़जरा सोचो, जरा देखो!खुली किताब, पढी पेज।यह ज़िंदगी की …
मै मुसलिम हूँ, तू हिन्दू हैं ………..हैं दोनो इंसानला मै तेरी गीता पढ लूँ , तू पढ ले मेरी कुरान ना मैने अपना अल्लाह देखाना देखा तूने भगवानहम दोनो …
लिखू मै भी कागज पर, जोहाथों की लकीर बन जायेगुन गुनाऊँ ऐसा तरानाजो मेरी तकदीर बन जायेकलम की श्याही ख्वाव बनेकागज की पट्टी विशबास बनेईरादों को अपने मजबूत करूँकी …
शेयर करें – शीर्षककोई नहीं,विषय सामग्री: ( आंसू ) आंखो की पलक को नम करके , दुनिया को गम से मुक्त किया , सुख दुख मे साथी बन करके …
जहाँ में हाल मेरा इस क़दर ज़बून हुआ कि मुझ को देख के बिस्मिल को भी सुकून हुआ ग़रीब दिल ने बहुत आरज़ूएँ पैदा कीं मगर नसीब का लिक्खा …
हिन्द में तो मज़हबी हालत है अब नागुफ़्ता बेह मौलवी की मौलवी से रूबकारी हो गई एक डिनर में खा गया इतना कि तन से निकली जान ख़िदमते-क़ौमी में …
हो न रंगीन तबीयत भी किसी की या रब आदमी को यह मुसीबत में फँसा देती है निगहे-लुत्फ़ तेरी बादे-बहारी है मगर गुंचए-ख़ातिरे-आशिक़ को खिला देती है
हिन्द में तो मज़हबी हालत है अब नागुफ़्ता बेह मौलवी की मौलवी से रूबकारी हो गई एक डिनर में खा गया इतना कि तन से निकली जान ख़िदमते-क़ौमी में …
क्योंकर ख़ुदा के अर्श के क़ायल हों ये अज़ीज़ जुगराफ़िये में अर्श का नक़्शा नहीं मिला क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ रंज लीडर …
फ़िरगी से कहा, पेंशन भी ले कर बस यहाँ रहिये कहा-जीने को आए हैं,यहाँ मरने नहीं आये बर्क़ के लैम्प से आँखों को बचाए अल्लाह रौशनी आती है, और …
* पाकर ख़िताब नाच का भी ज़ौक़ हो गया ‘सर’ हो गये, तो ‘बाल’ का भी शौक़ हो गया * बोला चपरासी जो मैं पहुँचा ब-उम्मीदे-सलाम- “फाँकिये ख़ाक़ आप …
पुरानी रोशनी में और नई में फ़र्क़ है इतना उसे कश्ती नहीं मिलती इसे साहिल नहीं मिलता दिल में अब नूरे-ख़ुदा के दिन गए हड्डियों में फॉसफ़ोरस देखिए मेरी …
मय भी होटल में पियो,चन्दा भी दो मस्जिद में शेख़ भी ख़ुश रहे, शैतान भी बेज़ार न हो ऐश का भी ज़ौक़ दींदारी की शुहरत का भी शौक़ आप …
तालीम लड़कियों की ज़रूरी तो है मगर ख़ातूने-ख़ाना हों, वे सभा की परी न हों जो इल्मों-मुत्तकी हों, जो हों उनके मुन्तज़िम उस्ताद अच्छे हों, मगर ‘उस्ताद जी’ न …
दिल लिया है हमसे जिसने दिल्लगी के वास्ते क्या तआज्जुब है जो तफ़रीहन हमारी जान ले शेख़ जी घर से न निकले और लिख कर दे दिया आप बी०ए० …
हाले दिल सुना नहीं सकता लफ़्ज़ मानी को पा नहीं सकता इश्क़ नाज़ुक मिज़ाज है बेहद अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता होशे-आरिफ़ की है यही पहचान कि ख़ुदी …
हस्ती के शज़र में जो यह चाहो कि चमक जाओ कच्चे न रहो बल्कि किसी रंग मे पक जाओ मैंने कहा कायल मै तसव्वुफ का नहीं हूँ कहने लगे …
हम कब शरीक होते हैं दुनिया की ज़ंग में वह अपने रंग में हैं, हम अपनी तरंग में मफ़्तूह हो के भूल गए शेख़ अपनी बहस मन्तिक़ शहीद हो गई मैदाने …
हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़ की ये बातें हैं इस रंग को क्या …
सूप का शायक़ हूँ, यख़नी होगी क्या चाहिए कटलेट, यह कीमा क्या करूँ लैथरिज की चाहिए, रीडर मुझे शेख़ सादी की करीमा, क्या करूँ खींचते हैं हर तरफ़, तानें हरीफ़ फिर मैं अपने …
समझे वही इसको जो हो दीवाना किसी का ‘अकबर’ ये ग़ज़ल मेरी है अफ़साना किसी का गर शैख़-ओ-बहरमन सुनें अफ़साना किसी का माबद न रहे काबा-ओ-बुतख़ाना किसी का अल्लाह ने दी है …
शेर कहता है बज़्म से न टलो दाद लो, वाह की हवा में पलो वक़्त कहता है क़ाफ़िया है तंग चुप रहो, भाग जाओ, साँस न लो
शेख़ जी अपनी सी बकते ही रहे वह थियेटर में थिरकते ही रहे दफ़ बजाया ही किए मज़्मूंनिगार वह कमेटी में मटकते ही रहे सरकशों ने ताअते-हक़ छोड़ दी …
शक्ल जब बस गई आँखों में तो छुपना कैसा दिल में घर करके मेरी जान ये परदा कैसा आप मौजूद हैं हाज़िर है ये सामान-ए-निशात उज़्र सब तै हैं …
मौत आई इश्क़ में तो हमें नींद आ गई निकली बदन से जान तो काँटा निकल गया बाज़ारे-मग़रिबी की हवा से ख़ुदा बचाए मैं क्या, महाजनों का दिवाला निकल …