Category: अज़ीज़ लखनवी
कई-कई हादसों से गुज़रने के बावजूद अपने आप को सूरमा समझने के भरम ने जब एक बार फिर मुझे आकाश से उतारकर धरती पर लिटाया सभी प्रियजन-स्वजन इलाज की …
एक बहुत बड़े काले समुद्र के जबड़े ने जब मुझे सहसा धर दबोचा कुछ इस तरह कि मुक्ति की प्रार्थना तक होंठों में भिंची रह गई ऊपर उठे हाथों …
मुँह पे झुर्री हाथ पे झुर्री पैर में फटी बिवाई पीर कमर में नीर नज़र में कुछ ना पड़े दिखाई केवल गलियारे से जाते हँसते, गाते और बतियाते एक …
शहर के बीचोबीच जो एक बड़ा-सा फ़व्वारा है जिसके इर्द-गिर्द खूबसूरत बाग़ीचा है वहाँ-वहाँ बिछी हैं आरामदेह बेंचें आराम भी करो नज़ारा भी देखो- संगीत की लय पर आर्केस्ट्रा …
वे हर मंदिर के पट पर अर्घ्य चढ़ाती थीं तो भी कहती थीं- ‘भगवान एक पर मेरा है।’ इतने वर्षों की मेरी उलझन अभी तक तो सुलझी नहीं कि- …
सलाह तो यह थी कि दिन भर जो प्रश्न तुम्हें उलझाए रखें, उन्हें डाल दो मन के अतल गह्वर में, अगली सुबह सरल उत्तर मिल जाएंगे। पर एक बार …
एक उजली-सी नागिन धीमे-धीमे फुफकारती मेरे आगे लहराती रही फिर उसने मुझे अपनी गुंजलक में घेरा और आख़िरकार डस लिया। दम तोड़ने से पहले की नीम बेहोशी में बचपन …
अपने घर में जो बाबूजी रद्दी काग़ज़ की चिर्री–पुर्जी भी सहेज के रखते थे– इस्तरी के लिए गए कपड़ों या दूधवाले का हिसाब दर्ज़ करने के लिए… वे अस्पताल …
दुनिया में कितना दुख–दर्द है? जानना चाहते हो? – किसी अस्पताल के जनरल वार्ड में जाओ । पहला ही चक्का तुम्हारी खुमारी मिटा देगा दूसरा काफ़ी होगा कि तुम्हें …
जब पूरे देश भर में “पावर आन, इंडिया आन” का झुनझुना बज रहा था, प्रगति मैदान में “नैनो रन्स, इंडिया रन्स” का शानदार नारा भी बुलन्द हुआ… इस लखटकिया …
सुजाता के पास मेरी ही क्यों, अपने सभी मरीज़ों की जिज्ञासाओं के उत्तर थे… जब मैंने कहा- ‘पार्क में सैर के समय उतनी भचक नहीं होती जितनी घर में …
मेरे साथ जुड़ी हैं कुछ मेरी ज़रूरतें उनमें एक तुम हो। चाहूँ या न चाहूँ : जब ज़रूरत हो तुम, तो तुम हो मुझ में और पूरे अन्त तक रहोगी। …
मुट्ठी बांधने की असफल कोशिश करते मरीज़ की छिंगुनी में एक बार जब अचानक ज़रा सी हरकत हुई… तुम्हारा मुख-कमल खिल उठा उत्साहित होकर तुम बोलीं- लौटेगी ज़रूर, उंगलियों …
कल मैंने कविता को लिखा नहीं कल मैंने कविता को जिया बहुत दिनों बाद लौटकर घर आए बच्चों के साथ बैट-बाल खेला, पहेलियाँ बूझीं कहानियाँ सुनीं-सुनाई चाट खाई वह …
मई की उमस में अपने छोटे से कमरे की खिड़की और दरवाजों को दिन भर मजबूती से बन्द रखा मैंने ताकि लू कि चपेट में ना आ जाऊँ ! शाम …
जब उन्होंने पहली नौकरी पाई हर दिन का सफ़र इतना लंबा था साइकिल ज़रूरी हुई तय करने के लिए पर उसे खरीदने के वास्ते पैसे नहीं थे। एक मित्र …
चीख़-चीख़ कर उन्होंने दुनिया-भर की नींद हराम नहीं कर दी नाक चढ़ा, भौं उठा सबको नीचे नहीं गिराया पूरी सुबह के दौरान एक बार भी मुँह नहीं फुलाया कोप-भवन …
आओ, हम फिर से जियें । बहता-बहता मेघखंड जो पहुँच गया है वहाँ क्षितिज तक लौटा लायें उसे, कहें : ‘ओ, फिर से बहो । मन, मन्थर, मृदु गति से …
1 (रात के पिछले पहर में स्वप्न टूटा । दीप की लौ आखिरी-सा उस समय था भोर का तारा टिमकता । चाँद की टूटी लहर में तैरती-सी दिख गयीं …
प्रकृति उजड़ा, अन्तहीन पथ ।- जिसपर कोई कभी नहीं भटका था । मैं जब उसपर चला, मुझे मालूम हुआ- कुशनों-क़ालीनों के फूलों पर चलना, गुलदानों में लगे गुलाबों से …
आत्मविस्मृति पर्वतश्रेणी । शीत हवाएँ । कोहरे-पाले, रूई के गाले-सी हिम से ढँका, मुँदा वह पर्वत-देश । श्वेत श्रृंग— जिनको आकांक्षा छूती धर जलधर का वेश । उन्हीं उच्च …
कलाकृति चित्रों में अंकित पथ,कानन, सरिताएं, सागर, भू, नभ, घन लिपि में बँधे हुए, शब्दों में वर्णित मैंने देखे । मुझे दिखा, मानो नदियां यों तो बहती हैं मैदानों …
जहाँ पर इन्द्रधनुष पहले-पहले बनते, जहाँ पर मेघ परस्पर परामर्श करते कि कैसा रूप धरें जो त्रिभुवन-मोहन हो । जहाँ से दृश्य नए खुलते— वहाँ तक जाकर मैं रूक …
1 ये जो चेहरे पर खिंची लकीरें हैं… ये हँसने से, गाने से, गाते रहने से अंकित होनेवाली तस्वीरें हैं । ये जो अपनी वय से ज़्यादा दिखनेवाले, माथे …
सारे के सारे तुम्हारे रहस्य, वे सब जो मुझको तुम बताती थीं अवश्य मुझमें सुरक्षित हैं -चपल चरण धरते हुए दौड़ कर जाना, और सखियों से कह आना- ‘देखो, …