Category: अजीत सिंह चारण
देखकर जिसको , मन अन्नत में कहीं डोल जाता गुदगुदाते से ख्यालो में कहीं डूबा मन अटपटा सा बोल जाता और पूछता कि जैसे उस अनछुई छुअन की सिरहन …
घणूं ही करियो जप घणूं ही करयो तप घणी जपी माळा पण अंतस में तो रहयो अंधेरो जमेडा रहया जाळा घणा ही दिन ढोल्यो ग्यान लोगां नै भरमाया करता …
बयां लफ्जो में जो ना हो,मोहब्बत दासता है वो. बिना मंजिल के जो पहुंचे मोहब्बत रास्ता है वो. मेरी नजरो है तू क्या ,जमाना ये कंहा जाने. अगर तू …
बडी बेचैन और उदास सी है ये आज की शाम कोहरे की चादर ओढे आसमां से आंसू ढलकाती सी न जाने क्या है इसके अंतस की पीडा बिजलियां सी …
न ख्वाब में न चांद में न कलियों में तुम्हे देखा है जब भी सोचा है तेरे बारे में तुम्हे अप ने ही दिल में देखा है और ये …
धागे यूं तो कच्चे होते है पर सीं देते है दिलों की दूरियां लगा देते है पैबन्द फटि जहां से मानवता और ढक देते है समाज की विदूपताओं को …
बद नामियों का दौर यहां यूहीं चला है कोई आ जाये कुसी पे सबने ही छला है कभी धम कभी जाति कभी शेतर के बल पे सबने हमारी छाती …
यारो की महफिल मे जब दोरे जाम होगा शेरो शाय्ररी का चलन जब आम होगा मेरा हर लफ्ज बन जायेगी गजल होटो पे मेरे जो तेरा नाम होगा
मै देखता हुॅं गली में आजकल बच्चे नहीं ख्ेालते सतोलिया, मारदडी या छुपम छुपाई का खेल नही करते आसमा छुुने की बाते चांद को खिलौना बनाने की भुलचुके है …
देखा मैंने एक रोज; बहुत से जन मिलकर बनाने लगे गण गण बना, गणाधिपति बने टटोलने लगे एक दूजे का मन नहीं मिला ! करने लगे वशीकरण बोलने लगे …
मंजिले हे , रास्ते हे , जज्बात हे , पर हमे अब खुद पर एतबार कहा होता हे ? सारी उम्र गुजारी हे तन्हा, तेरे लिए मरने के बाद …