Category: अजय कुमार बनास्या
आज फिर शाम ढल आई फिर से तेरी याद आई तू तो ना आई बेफवा लेकिन याद तेरी क्यों आई घूमता रहा ये सवाल मेंरे दिमाग में रात भर …
कठिन है राह-गुज़र थोड़ी देर साथ चलो। बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी देर साथ चलो। तमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है ये जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ …
सता-सता के हमें अश्कबार करती है तुम्हारी याद बहुत बेक़रार करती है। वो दिन जो साथ गुज़ारे थे प्यार में हमने तलाश उनको नज़र बार-बार करती है। ग़िला नहीं …
खुशियो से नाराज है मेरी जिदंगी प्यार की मोहताज है मेरी जिंदगी हंसता हु दुनिया को दिखाने के लिए दर्द की किताब है मेरी जिदंगी
एक बचपन का जमाना था, जिसमे खुशियों का खजाना था.. चाहत चाँद को पाने कि थी, पर दिल तितली का दिवाना था.. खबर ना थी कुछ सुबह क़ी ना …
जवान रात के सीने पे दूधिया आँचल मचल रहा है किसी ख्वाबे-मरमरीं की तरह हसीन फूल, हसीं पत्तियाँ, हसीं शाखें लचक रही हैं किसी जिस्मे-नाज़नीं की तरह फ़िज़ा में …
ऐ मेरे देश वतन के लोगो जरा याद करो उस नारि को लक्ष्मी बाई झाँसि वालि सन् 1857 कि ओ क्राँति को जो मर मिटे इतिहास बने ऐ देश …
एहतियाते – नजर को क्या कहिये जनाब नजर मिलाते है वो नजर बचIते हुऐ ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ तुम्हे देखते ही उलझने बढ जाती है मेरी उलझने सुलझाने मे तुम ना मेरी …
पानी से प्यास ना बुझी, तो महकाने की तरफ चल निकले सोचा शिकायत करु तेरी खुदा से, पर खुदा भी तेरा आशिक निकला …
खुदा ने जब तुझे बनाया होगा इक सुरूर सा उसके दिल मे आया होगा सोचा होगा क्या दुगा तोहफे मे तुझे, तब जाके उसने मुझे बनाया होगा …
काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा रास्ते बंद हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवा बायस-ए-रश्क़ है तन्हा रवी-ए-रहरौ-ए-शौक़ हमसफ़र कोई नहीं दूरी-ए-मंज़िल के सिवा हम ने …
दुनिया मे कितना गम है मेरा गम कितना गम है दुनिया के गम के आगे ये मेरा क्या दम हैा
मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं.. तुम मत मेरी मंजिल आसान करो.. हैं फ़ूल रोकते, काटें मुझे चलाते.. मरुस्थल, पहाड चलने की चाह बढाते.. सच कहता हूं जब …
मेरे दर्द को वो समझ न सकी मेरे अरमानो को वो समझ न सकी भूला दिया उसने मुझे मगर मेरी यादो को वह भूला न सकी कवि अजय कुमार …
अजय कुमार बनास्या
अजय कुमार बनास्या
अजय कुमार बनास्या
काश ये दुनिया इक महखाना होती हर तरफ शराब की दुकाने होती पी लेते हम भी थोडी सी अगर किसी को कोई तकलीफ नही होती