Category: आदिल रशीद
सारी दुनिया देख रही हैरानी से हम भी हुए हैं इक गुड़िया जापानी से बाँट दिए बच्चों में वो सारे नुस्खे माँ ने जो भी कुछ सीखे थे नानी …
ग़ज़ल धोका है (उर्दू में शब्द धोका है और हिंदी में धोखा है ) ये चन्द रोज़ का हुस्न ओ शबाब धोका है सदाबहार हैं कांटे गुलाब धोका है …
वफ़ा, इखलास, ममता, भाई-चारा छोड़ देता है तरक्की के लिए इन्सान क्या-क्या छोड़ देता ही तड़पने के लिए दिन-भर को प्यासा छोड़ देता है अजाँ होते ही वो किस्सा अधूरा …
रूहों ने शहीदों की फिर हमको पुकारा है सरहद की सुरक्षा का अब फ़र्ज़ तुम्हारा है हमला हो जो दुश्मन का हम जाएँगे सरहद पर जाँ देंगे वतन पर …
रात क्या आप का साया मेरी दहलीज़ पे था सुब्ह तक नूर का चश्मा मेरी दहलीज़ पे था रात फिर एक तमाशा मेरी दहलीज़ पे था घर के झगडे में …
ग़ालिब की ज़मीन में आदिल रशीद की एक ग़ज़ल मुझ में पैदा जो होसला न हुआ बेसबब वो भी बेवफा न हुआ लबकुशाई से यूँ भी डरता हूँ वो …
स्वतंत्रता दिवस 1989 पर कही गई नज़्म मंज़िले मक़सूद । यह नज़्म 2 जुलाई 1989 को कही गई और प्रकाशित हुई । इस नज़्म को 14 अगस्त 1992 को …
चलो पैग़ाम दे अहले वतन को कि हम शादाब रक्खें इस चमन को न हम रुसवा करें गंगों -जमन को करें माहौल पैदा दोस्ती का यही मक़सद बना लें …
पहले सच्चे का बहिष्कार किया जाता है फिर उसे हार के स्वीकार किया जाता है ज़हर में डूबे हुए हो तो इधर मत आना ये वो बस्ती है जहाँ …
न दौलत ज़िंदा रहती है न चेहरा ज़िंदा रहता है बस इक किरदार ही है जो हमेशा ज़िंदा रहता है कभी लाठी के मारे से मियाँ पानी नहीं फटता …
ईश्वर ने राजा और रंक दोनों को जो चीज़ एक सामान दी है है वो है ममता ……आदिल रशीद हम जो भी बात चीत घर में करते हैं हमारे …
दिखावा जी हुजूरी और रियाकारी नहीं आती हमारे पास भूले से ये बीमारी नहीं आती जो बस्ती पर ये गिद्ध मडला रहे हैं बात तो कुछ है कभी बे मसलिहत इमदाद सरकारी …
मुहावरा ग़ज़ल गिर के उठ कर जो चल नहीं सकता वो कभी भी संभल नहीं सकता तेरे सांचे में ढल नहीं सकता इसलिए साथ चल नहीं सकता आप रिश्ता …
तुम्हारे ताज में पत्थर जड़े हैं जो गौहर हैं वो ठोकर में पड़े हैं उड़ानें ख़त्म कर के लौट आओ अभी तक बाग़ में झूले पड़े हैं मिरी मंज़िल नदी …
तपा कर इल्म की भट्टी में बालातर बनाता हूँ जो सीना चीर दें ज़ुल्मत का वो खंजर बनाता हूँ मैं दरया हूँ मिरा रुख मोड़ दे ये किस में …
जो बन संवर के वो एक माहरू निकलता है तो हर ज़बान से बस अल्लाह हू निकलता है हलाल रिज्क का मतलब किसान से पूछो पसीना बन के बदन …
एक और मुहावरा ग़ज़ल जिस किसी दिन तुम उसूलो के कड़े हो जाओगे बस उसी दिन अपने पैरों पर खड़े हो जाओगे सच को समझाने की खातिर ये दलीलें …
गिर के उठ कर जो चल नहीं सकता वो कभी भी संभल नहीं सकता तेरे सांचे में ढल नहीं सकता इसलिए साथ चल नहीं सकता आप रिश्ता रखें, रखें …
योमे मजदूर/ मजदूर दिवस /लेबर डे/ labour day खोखले नारों से दुनिया को बचाया जाए आज के दिन ही हलफ इसका उठाया जाए जब के मजदूर को हक उसका …
ख़्वाब आँखों में पालते रहना जाल दरिया में डालते रहना ज़िंदगी पर क़िताब लिखनी है मुझको हैरत में डालते रहना और कई इन्किशाफ़ होने हैं तुम समंदर खंगालते रहना ख़्वाब …
क्या लिक्खूं उनको मुश्किलें अलकाब मे भी हैं महताब लिक्खूं , दाग़ तो महताब मे भी हैं उपजाऊ मिटटी मिलती है बंजर ज़मीन को सोचो अगर तो फायदे सैलाब …
(एक आज़ाद हिंदी कविता) यादो के रंगों को कभी देखा है तुमने कितने गहरे होते हैं कभी न छूटने वाले कपडे पर रक्त के निशान के जैसे मुद्दतों बाद …
कल जो राइज था आज थोड़ी है अब वफ़ा का रिवाज थोड़ी है ज़िंदगी बस तुझी को रोता रहूँ और कोई काम काज थोड़ी है दिल उसे अब भी बावफ़ा …
उसे तो कोई अकरब काटता है कुल्हाड़ा पेड़ को कब काटता है जुदा जो गोश्त को नाख़ुन से कर दे वो मसलक हो के मशरब काटता है बहकने का नहीं इमकान कोई अकीदा सारे करतब …
ख़मोश होता हे क्यूँ दरिया इश्तआल के बाद सवाल ख़त्म हुए उस के इस सवाल के बाद वो लाश डाल गया कत्ल कर के साए में उसे ख़याल मिरा आ …