Category: अभिज्ञात
होने सा होना इस-उस से हाथ मिलाते हुए मैंने महसूस किया है मेरे हाथों ने खो दी है अपनी ऊष्मा अब मेरे हाथों और दस्तानों में कोई फ़र्क नहीं …
एक हूक गाँव से काम की तलाश में आए भाई को टालकर विदा करते उठती है परदेस में एक हूक जो बूढ़े पिता की ज़िम्मेदारियों से आँख चुराते हुए …
बंगाल में आये दिन बंद के दौरान किसी डायनासोर के अस्थिपंजर की तरह हावड़ा और कोलकाता के बीचोबीच हुगली नदी पर पड़ा रहता है हावड़ा ब्रिज जैसे सदियों पहले …
तब भी जोड़ो-घटाओ अगर गणित कमज़ोर हो ख़रीद लो सबसे पहले कलकुलेटर यह दुनिया गणितहीन लोगों के लिए नहीं है गणित का निषेध आदमी के पक्ष में हैं और …
हवा में उछलते हुए गेंद उछल रही है उससे पहले मेरे टखने एड़ियाँ पंजे गेंद में देख रहे हैं मेरे पैर अपनी उछाल मेरे पैर गेंद के अन्दर हैं …
तुम जानो, बहुत दिनों से नहीं हूँ मैं – अर्थ तुम मानो, बहुत दिनों से नहीं हूँ – प्यास तुम हँसो, बहुत दिनों से हूँ मैं – थिर ॥क॥ …
बारहा तोहमतें गिला रखिए आप हमसे ये सिलसिला रखिए लूटने वाला हँसी है इतना जाँ से जाने का हौसला रखिए दिल की खिड़की अगर खुली हो तो दिल के …
जैसे कि एक की साँस का होना दूसरे के लिए बेहद ज़रूरी है एक जो पहले सोता है लेता है खर्राटे ज़ोर-ज़ोर से और दूसरे जागता रहता है उसके …
सच का भूत घूम रहा है दरबदर ढूंढ़ता हुआ एक आदमी उसे आदमी नहीं मिलते वह जिसके साथ रह सके। चारों तरफ भरा पड़ा है सच। हज़ार-हज़ार आँखों से …
कभी बिखरा के सँवारा तो करो मुझपे एहसान गवारा तो करो जिसकी सीढ़ी से कभी गिर के मरूँ ऐसी मंज़िल का इशारा तो करो मैं कहाँ डूब गया ये …
कितना सुरक्षित है शिलालेखों का अध्ययन कि वह बदलता नहीं आदमी की गति से। बदलना, अविश्वसनीय है और खतरनाक कुछ लोगों की राय में। तुम कुछ भी अर्थ दो …
बातों बातों में जो ढली होगी वो रात कितनी मनचली होगी तेरे सिरहाने याद भी मेरी रात भर शम्मां-सी जली होगी जिससे निकला है आफ़ताब मेरा वो तेरा घर …
आदमी के रक्त में निरंतर हिमोग्लोबीन कम होता जा रहा है यह किसी डॉक्टर की रिपोर्ट नहीं मेरी कविता पढ़कर भाँप सकते हो अपनी कछुआ खंदकों से निकल कर …
मेरी सुस्ताई हुई आँखों ने भाँप लिए हैं अपने सही मोर्चे विश्वस्त है अब मेरी गवाही कि सड़क से कोढ़ की तरह फूटती है सीढ़ी।
सिवा तुम्हारी दो बाहों के कोई बन्धन आज ना रहे! तेरे काँधे पर अपना सर रखकर मैं मर जाऊँ क्या गम तुझको मीत बनाकर सारा जग बैरी कर जाऊँ …
देवगाँव से मेहनाजपुर लौटते वाली रात की आख़िरी बस तेज़ी से भागती है मगर हर पड़ाव की सवारियों को उठाती है और बिना पड़ाव के भी लोगों के उदास, …
तीरगी का है सफ़र रुक जाओ बोले अनबोले हैं डर रुक जाओ तुम्हारे पास वक़्त कम हो तो ले लो तुम मेरी उमर रुक जाओ हर ओर दुकाने ही …
तुम मेरे जीवन के मरुथल में सावन की रिमझिम जैसी आई हो लेकर रतनारे नैनों में कुछ बातें ऐसी! जीने का मतलब था खोया तुमने ही आ अंकुर बोया …
आओ और मेरी करारी रोटियाँ ले जाओ तुम्हारी प्रतीक्षा में हूँ मैं मुझे शरमिन्दा न करो मैं व्याकुल हूँ देखो मैं कितनी बेफिक्र नींद लेता हूँ मुझे दहशत से …
मैं ज़रूर रोता अगर वह कायम रहती अपने कहे पर और उसके अन्दर-बाहर रह जाता वह मकान जिसे वह अपना जन्नत कहती है मैंने देखा, उस मकान के आगे …
तू एक बार मुझको पुकार बस एक बार मुझको पुकार। मन के साध न सध पाये यौवन की हाला रीत गयी स्वर भंग आलाप न ले पाया निष्ठुर खामोशी …
दुनिया का बाज़ार भला है खरे परखी हैं व्यापारी तेरी एक खुशी के बदले मैं नीलाम अगर हो पाऊँ। चाहे वह कोई महफ़िल हो चाहे वह कोई आलम हो …
न जाने किस घोंघे से निकल आते हैं मल्लाह मगर वे जब भी आते हैं ले आते हैं अपने साथ तिलस्म तिलस्म जो कभी नहीं टूटता। मल्लाह ले आते …
किस तरह हमसे निभेंगे ये नियम, चौरास्तों के हम तुम्हारी याद में जलते हुए, अवकाश है! हर विविधता रास आए मैं रसिक इतना नहीं हूँ हर डगर की बाँह …
बार-बार अपनी इबारतें बदलते-बदलते मेरा मत इतना घिस चुका है कि अंतिम खड़ा है पहले के ही विरुद्ध। हर चीज़ की शिनाख़्त ऐसे ही खोती है। मेरी शुबहाग्रस्त ईमानदार …