Tag: वसंत ऋतु कविता
प्रकृति ने धरती का सृंगार किया बहुरंगे फूलों के संग शोभित करके अनुपम छबि से भर कर हर तरु मैं नव जीवन रंग सुरभित पुष्पित हुई द्रुमदिक लता | …
आँखों के गलीचे में वोह चुपचाप बैठें हैं नजरो को सकते वोह बेताब बैठे हैं कोई उलझन है मन में तोह पूछ लूं लेकिन उनकी आँखों …
पता नही क्यू मै अलग खङा हूं दुनिया से ! अपने सपनो को ढूढता विमुख हुआ हूं दुनिया से !! पता नही क्यूं मै इस दुनिया से अलग हूं …
जब भास्कर आते है खुशियों का दिप जलाते है ! जब भास्कर आते है अन्धकार भगाते है !! जब सारथी अरुण क्रोध से लाल आता ! तब सारा विश्व …
आनन्द-उमंग रंग, भक्ति-रंग रंग रंगी, एहो ! अनुराग सत्य उर में जगावनी | ज्ञान वैराग्य वृक्ष लता पता चारों फल, प्रेम पुष्प वाटिका सुन्दर सजवानी | सत्संगी समझदार, देखो …
(1) दिल को बर्बाद किये जाती है,गम बदस्तूर1 किये जाती है, मर चुकीं सारी उम्मीदे, आरजू है कि जिये जाती है। (2) देखो न आंखें भरकर किसी के तरफ …
(1) जबीने1-सिज्दा में कौनेन2 की वुसअत3 समा जाए, अगर आजाद हो कैदे – खुदी4 से बंदगी5 अपनी। (2) जिन खयालात से हो जाती है वहशत6 दूनी, कुछ उन्हीं से …
(1) घुट-घुट के मर न जाए तो बतलाओ क्या करे, वह बदनसीब जिसका कोई आसरा न हो। (2) चाल वह दिलकश जैसे आये, ठंडी हवा में नींद का झौंका। …
(1) उस घड़ी देखो उसका आलम1, नींद में जब हो आंख भारी। (2) कभी मौत कहती है अलहजर2, कभी दर्द कहता है रहम3 कर, मैं वह राह चलता हूँ …
(1) इश्क है इक निशाते1-बेपायाँ2, शर्त यह है कि आरजू न हो। (2) उन लबों पै झलक तबस्सुम3 की, जैसे निकहत 4में जान पड़ जाये। (3) अहले-हिम्मत5 ने हुसूले-मुद्दआ6 …
आया बसंत, आया बसंत रस माधुरी लाया बसंत आमों में बौर लाया बसंत कोयल का गान लाया बसंत आया बसंत आया बसंत टेसू के फूल लाया बसंत मन में …
था यहाँ बहुत एकान्त, बंधु नीरव रजनी-सा शान्त, बंधु दुःख की बदली-सा क्लान्त, बंधु नौका-विहार दिग्भ्रान्त, बंधु ! तुम ले आये जलती मशाल उर्जस्वित स्वर देदीप्य भाल हे ! कविता के …
मलयज का झोंका बुला गया खेलते से स्पर्श से रोम रोम को कंपा गया जागो जागो जागो सखि़ वसन्त आ गया जागो पीपल की सूखी खाल स्निग्ध हो चली …
हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ! वही हाँ, वही जो युगों से गगन को बिना कष्ट-श्रम के सम्हाले हुए हूँ; हवा हूँ, हवा, मैं बसंती हवा हूँ। वही …