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चल पड़ा हूँ ना छूनी है अब छाया , ना करना है अब दुःख दूना चल पड़ा हूँ अब भरने आज तक था जो सूना ! …
क्या है ये ( तुम्हे नहीं पता क्या ) क्या है ये ! आखिर ये है क्या ?अगर पैदा हो गयी में बनके लड़कीतो हक़ मेरे गए क्यालड़की हूँ …
हमने तो कोरोना ही पेल दिया माना थोड़ी संकट की घडी आयी है ,कही चिंता तो कहीं तन्हाई है पर हमने तो खेल ऐसा खेल दिया हमने तो कोरोना को ही …
ना कोई चाहत है मिज़ाज-ऐ-हुस्न किये हमने बर्बाद हैकुछ ही वक़्त मे मचा दिए फ़वाद हैअब तो उस ख़ुदा से इतनी सी इबादत हैअगर तू मिल जाए तो राहत …
क्या है ये क्या है ये ! आखिर ये है क्या ? अगर पैदा हो गयी में बनके लड़की तो हक़ मेरे गए क्या लड़की हूँ धिक्कार नहीं …
ज़िंदगी आ कुछ करके दिखाइतिहास के पन्नों मे नाम हो लिखाकुछ ऐसे सिद्धांत बनाकि रात मे भी भानू हो जग्गाप्रीति के अपने सौ मन हैंकभी राम के आगे है …