ग़ज़ल (बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम ना मिल सके) Madan Mohan Saxena 10/08/2016 मदन मोहन सक्सेना 4 Comments कल तलक लगता था हमको शहर ये जाना हुआ इक शख्श अब दीखता नहीं तो शहर ये बीरान है बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम ना … [Continue Reading...]