ग़ज़ल (आये भी अकेले थे और जाना भी अकेला है) Madan Mohan Saxena 15/07/2016 मदन मोहन सक्सेना 7 Comments पैसोँ की ललक देखो दिन कैसे दिखाती है उधर माँ बाप तन्हा हैं इधर बेटा अकेला है रुपये पैसोँ की कीमत को वह ही जान सकता है बचपन में … [Continue Reading...]