हुनर- डी के निवातिया डी. के. निवातिया 16/12/2020 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ No Comments हुनर *** छोटी छोटी बातों पर अपनों से गिला क्या, इश्क मुहब्बत में हुई बातों का सिला क्या, झुकने का हुनर जरूरी है यहां जीने के लिए, अड़कर पर्वत … [Continue Reading...]
हुनर डी. के. निवातिया 23/06/2016 धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ 26 Comments गूंथे जाते है माला में पुष्प वही हर मौसम में खिलने का जो हुनर जानते है ।। मुरझाये पुष्प स्वयं ही अक्सर, शाखाओ से टूटकर बिखर जाया करते है … [Continue Reading...]